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प्रशस्तिपाठः]
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तोल्हाख्यस्य मता भार्या तोल्हश्रीः श्रीनिवासिनी। साढाभिधोऽस्ति तत्पुत्रो दीर्घायुः स भवेदिह ॥ ३६॥ पत्नी तेजाभिधानस्य तेजश्रीर्लज्जयान्विता। भोजाख्यस्य तथा भार्या भोजश्रीभक्तिकारिणी ॥ ३७ ।। पार्श्वसाधोद्वितीयोऽस्ति खेतानामा तनूद्भवः । श्रीमान्विनयसम्पन्नः सज्जनानन्ददायकः ।। ३८ ॥ गेहिनी तस्य नीकाख्या रतिर्वा मन्मथस्य वै । या जिगाय स्वनेत्राभ्यां स्फुरद्भ्यां चकितां मृगीम् ।। ३६ ॥ तस्याः पुत्रोऽस्ति वीझाख्यो विद्याधारः प्रियंवदः । ज्ञातीनानन्दयामास विनयादिगुणेन यः ।। ४० ।। पार्श्वपुत्रस्तृतीयोऽस्ति नेमाख्यो नियमालयः । देवपूजादिषट्कर्मपद्मिनीखण्डभास्करः ॥ ४१ ।। साभूनाम्नी तु तज्जाया रूपलज्जावती सती। वस्तासुरजनौ तस्याः सुतौ जनमनोहरौ ॥ ४२ ॥ पार्श्वभार्या द्वितीया या सूहोनाम्नीति तत्सुतः। ईश्वराह्वो कलावासः कलुषापेतमानसः ।। ४३ ॥ साधुचोषाभिधानस्य स्ववंशाम्बरभास्करः (स्वतः)। माऊनाम्न्यास्ति सद्भार्या शीलानेककलालया॥४४॥ तस्या अंगरुही ख्याती सत्यभूषाविभूषितौ। लक्ष्मीवन्तौ महान्तौ तौ पात्रदानरतौ हितौ ॥ ४५ ॥
थे ॥३२॥ तोल्हा की स्त्री का नाम तोल्हश्री था। तोल्हश्री लक्ष्मी का निवास थी-अत्यन्त सुन्दर थी। उसके साढा नाम का दीर्घायुष्क पुत्र हुआ ॥३६॥ तेजा की तेजश्री नाम की लजीली स्त्री थी तथा भोजा की भोजश्री नाम की भक्त स्त्री थी ॥३७॥ पाश्र्व साहु के एक खेता नाम का द्वितीय पुत्र था, जो श्रीमान् था, विनय से सम्पन्न था तथा सज्जनों को आनन्द देनेवाला था ॥३८॥ खेता की स्त्री का नाम नीका था, जो कामदेव की स्त्री रति के समान जान पड़ती और जिसने अपने चंचल नेत्रों से भयभीत मृगी को जीत लिया था। ॥३६॥ उस नीका के वीझा नाम का पुत्र हुआ जो विद्याओं का आधार था, प्रियभाषी था और विनयादि गुणों से कुटम्ब के लोगों को आनन्दित करता था ॥४०॥ पाच साहु का तीसरा पुत्र नेमा था, जो नियमों व्रतों का आलय था, और देवपूजा आदि षट्कर्म रूपी कमलिनियों के समूह को विकसित करने के लिए सूर्य स्वरूप था ॥४१॥ उसकी स्त्री का नाम साभू था। साभू रूपवती, लज्जावती तथा शीलवती थी। उसके वस्ता और सुरजन नाम के दो पुत्र हुए जो मनुष्यों के मन को हरण करने वाले थे ॥४२॥ पाव साह की सूहो नाम की द्वितीय स्त्री थी, उसके ईश्वर नाम का पुत्र हआ, जो कलाओं का निवास था और जिसका मन पाप से रहित था ॥४३॥ अपने वंश रूपी आकाश के सूर्य स्वरूप साह चोचा। की भार्या थी जो शील-पातिव्रत्य तथा अनेक कलाओं की घर थी॥४४॥ उसके दो प्रसिद्ध पुत्र थे, जो सत्य रूपी आभषण से विभूषित, लक्ष्मीवन्त, महन्त, पात्रदान में रत तथा हितकारी थे॥४३॥ उन दोनों में पहला
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