SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्याप्यधिकारः ] [ ३६३ मिव संस्थानं यस्य तत्कुब्जशरीर संस्थानं', यस्योदयेन शाखानां दीर्घत्वं मध्यस्य ह्रस्वत्वं भवति तत्कुब्जशरीरसंस्थाननाम । वामनस्य शरीरं वामनशरीरं तस्य संस्थानं वामनशरीरसंस्थाननाम, यस्योदयात् शाखानां ह्रस्वत्वं कायस्य च दीर्घत्वं भवति । विषमपाषाणभृताद्रिरिव विषमं हुण्डं यस्य शरीरं तस्य संस्थानमिव संस्थानं यस्य तद्भुण्डकशरीर संस्थानं, यस्योदयेन पूर्वोक्तपंच संस्थाने भ्योऽन्यद्द्बीभत्सं संस्थानं भवति । अथ बन्धनसंघात संस्थानेषु को भेद इति चेन्नैष दोषो यस्य कर्मण उदयेनोदारिकशरीरपरमाणवोऽन्योन्यं बन्ध मागच्छन्ति तदोदारिकशरीरबन्धनं नाम । यस्य कर्मण उदयेनोदारिकशरीरस्कन्धानां शरीरभावमुपगतानां बन्धनामकर्मोदयेन बन्धनबद्धानामौदार्यं भवति तदौदारिकशरीरसंघातनाम । यस्य च कर्मण उदयेन शरीरस्कन्धानामाकृतिर्भवति तत्संस्थानमिति महान्भेदो यतः । एवं सर्वत्र द्रष्टव्यमिति ॥ १२३६ ॥ तथा--- यस्योदयादस्थिसंधिबन्धविशेषो भवति तत्संहननं नाम, एतस्याभावे शरीरसंहननं न भवेत् । तत् षड्विधं; वज्रर्षभनाराचसंहननं, वज्रनाराचसंहननं, नाराचसंहननं, अर्द्धनाराचसंहननं, कीलक संहननं, असं प्राप्ता पाटिकासंहननं चेति । संहननम् अस्थिसंचयं ऋषभो वेष्टनं वज्रवदभेद्यत्वादृषभो वज्रनाराचश्च वज्रवद् दीर्घपना हो वह कुब्जशरीरसंस्थान है । वामन का शरीर वामनशरीर है । उसका संस्थान वामनसंस्थान है । इस कर्म के उदय से शाखाओं में दीर्घपना और शरीर में ह्रस्वपना रहता है, अर्थात् वामनशरीरवालों के हाथ-पैर आदि अवयव छोटे-छोटे होते हैं और सारा शरीर मोटा-गठीला रहता है । ये बौने कहलाते हैं । विषम पत्थरों से भरे हुए पर्वत के समान जिसका विषम- हुण्ड आकार हो वह हुण्डकशरीरसंस्थान है। इसके उदय से पूर्वोक्त पाँच संस्थानों के अतिरिक्त बीभत्स संस्थान होता है । बन्धन, संघात और संस्थान में अन्तर क्या अन्तर है ? यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि जिस कर्म के उदय से औदारिक शरीर के परमाणु परस्पर बन्ध को प्राप्त होते हैं- मिल जाते हैं वह औदारिकशरीरबन्धन नामकर्म है और इस बन्धन नामकर्म के उदय से एकरूप बन्धन से बँधे हुए शरीरभाव को प्राप्त हुए परमाणुओं का - औदारिक शरीरस्कन्धों का जिस कर्म के उदय से औदार्य - चिकने रूप से एकमेक हो जाना प्राप्त होता है वह औदारिक- शरीरसंघात नामकर्म है, और जिसकर्म के उदय से शरीरस्कन्धों की आकृति नती है वह संस्थान नामकर्म है। इस प्रकार इनमें महान अन्तर है, अर्थात् बन्धन नामकर्म के उदय से परमाणु मिल जाते हैं परन्तु तिल के लड्डू के समान छिद्र सहित रहते हैं, संघात के उदय से वे चिकने आटे के लड्डू के समान सर्वत्र एकमेक हो जाते हैं, जबकि संस्थानकर्म शरीर का आकार बनाता है । ऐसे ही सब शरीरों के बारे में समझ लेना चाहिए । (७) जिसके उदय से हड्डियों की सन्धि में बन्धविशेष होता है वह संहनन नामकर्म है। इसके अभाव में शरीर में संहनन ही नहीं रहेगा। इसके भी छह भेद हैं-वज्रर्षभनाराचसंहनन, वज्रनाराचसंहनन, नाराचसंहनन, अर्द्धनाराचसंहनन, कीलकसंहनन और संप्राप्ता पाटिका संहनन । जिस कर्म के उदय से अस्थिसमह और स्नायुवेष्टन वज्र के समान १. कुब्जशरीर संस्थान वाले मनुष्यों के पृष्ठ के भाग में बहुत-सा मांस पिण्डरूप रहता है । वे लोक में कुबड़े कहलाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy