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पर्याधिकार। ]
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प्राभूतकप्राभृतकपमासस्तत एकाक्ष रेण प्राभृतप्राभृतकं भवति, तत एकाक्ष रेण वृद्धिर्यावद्वस्तु एकाक्षरेणीनं तत्सर्वं प्राभृतकप्राभृतकसमासः एकाक्षरेण वस्तु विंशतिप्राभृतकैस्तत एकाक्षरवृद्धया नेतव्यं यावत्पूर्वमेकाक्ष रेणोनं तत्सर्वं वस्तुसमासः । तत एकाक्षरेण पूर्वं भवति संख्यातवस्तुभिस्तत एककाक्षरवृद्धया तावन्नेतव्यं यावल्लोकविन्दुसारश्रुतं एकाक्षरेणोनं, तेनाधिकं पूर्वम् पूर्वं समासः । एतस्य श्रुतस्यावरणं श्रुतावरणं श्रुतज्ञानभेदावरणस्यापि भेद इति । अवधिज्ञानं देशावधिपरमावधिसर्वावधिभेदेन त्रिविधमेकैकमपि जघन्योत्कृष्टभेदेन द्विविधम् । तत्र जघन्यदेशावधिद्वं व्यत एकजीवोदारिकशरीरस्य लोकेन भागे हृत एकभागम् जानाति, क्षेत्रतः घनांगुलस्यासंख्यात भागं जानाति, कालत आवल्या असंख्यातभागं जानाति । भावतो जघन्यद्रव्यपर्यायेषु आवल्यसंख्पातभागेषु कृतेषु तत्रैकखण्डं जानाति । उत्कृष्टदेशावधिर्द्र व्यतः कार्मणवर्गणाया मनोवर्गणानन्तभागेन भागे हृते तत्रैकखण्डं जानाति, क्षेत्रतः संख्यातलोकं जानाति, कालतः पल्योपमं जानाति, भावतोऽसंख्यात लोक पर्यायान् जानाति । तत्र परमावधिर्जघन्यद्रव्यतो देशाद्य त्कृष्टद्रव्यस्य मनोवगंणानन्त भागस्यानन्तभागन (?)
क्रम से जब तक प्राभृतकप्राभृतक ज्ञान न आ जावे तब तक प्राभृतकसमास ज्ञान कहलाता है । उसके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि करने से प्राभृतक प्राभृतकसमास होता है। इसके ऊपर एक-एक अक्षर की वृद्धि करने से जब एक अक्षर से कम वस्तु ज्ञान हो जाता है तब तक के सभी ज्ञान को प्राभृतक-प्राभृतकसमास कहते हैं । अन्तिम प्राभृतक प्राभृतकसमास में एक अक्षर मिलाने से वस्तु ज्ञान होता है यह बीस प्राभृतों से उत्पन्न होता है ।
इसके अनन्तर एक-एक अक्षर की वृद्धि करने से एक अक्षर कम पूर्व ज्ञान के आने तक सभी भेद वस्तुसमास के होते हैं । उसमें एक अक्षर मिलाने से पूर्व नाम का ज्ञान होता है। ख्यात वस्तु ज्ञानों से यह पूर्वज्ञान होता है। इसमें एक-एक अक्षर की वृद्धि तब तक करना चाहिए कि जब तक लोकबिंदुसार नाम का श्र ुतज्ञान न हो जावे ।
यह एक अक्षर से कम पूर्वश्रुत ज्ञाम था । उसमें एक अक्षर मिला देने पर पूर्वसमास ज्ञान हो जाता है। इन श्रुत के ऊपर आवरण को श्रुतावरण कहते हैं । श्रुतज्ञान के जिसमे भेष हैं उतने ही भेद श्रुतज्ञानावरण के जानना चाहिए।
अवधिज्ञान के तीन भेद हैं- देशावधि, परमावधि और सर्वावधि । प्रत्येक के जघन्य और उत्कृष्ट ऐसे दो-दो भेद भी होते हैं । उसमें से जघन्य देशावधि द्रव्य से एक जीब के औवारिक शरीर के जितने प्रदेश हैं उसमें लोक का भाग देने पर जो लब्ध आवे उसके एक भाग को जानता है । क्षेत्र से घनांगुल के असंख्यातवें भाग को जानता है । काल से आवली के असंख्यातवें भाग को जानता है । भाव से द्रव्य की जघन्य पर्याय में आवली के असंख्यात भाग करने पर उसके एक खण्ड को जानता है । उत्कृष्ट देशावधि द्रव्य से कार्मण वर्गणा में मनोवर्गणा के अनन्त भाग से भाजित करने पर उसमें से एक खण्ड को जनता है । क्षेत्र से संख्यात लोक को जानता है । काल से पल्योपम को जानता है। भाव से असंख्यात लोकप्रमाण पर्यायों को जानना है ।
जघन्य परमावधि द्रव्य की अपेक्षा से देशावधि का जो उत्कृष्ट द्रव्य है उसमें मनोवर्गणा के अनन्त भाग करके उसमें से एक भाग के द्वारा भाजित करने पर लब्ध के एक भाग को
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