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मूलाधार
वृद्धीरोदशी: असंख्यातलोकमात्रा: षड्वृद्धीरतिक्रम्य पर्यायाक्षरसमासस्य सर्वपश्चिमो विकल्पो भवति तदनन्तभागाधिकमक्षरं नाम श्रुतज्ञानं भवति । कथं ? द्रव्यश्रुतप्रतिबद्धकाक्षरोत्पन्नस्योपचारेणाक्षरव्यपदेशात् । तस्योपर्येकाक्षरे वृद्धि गतेऽक्षरसमासः अक्षरस्यानन्तभागे वा वृद्धि गतेऽशरसमासो भवति एवं यावत्पदं न प्राप्त
दक्षरसमासः। तस्योपर्येकाक्षरे वृद्धि गते पदं षोडशशतचतुस्त्रिशस्कोटीभिस्त्र यशीतिलक्षाधिकाभिरष्टसप्ततिशताधिकाभिरष्टाशीत्यक्षराधिकाभिश्चाक्षराणां गृहीताभिरेक द्रव्यं श्रुतपदं तस्मादुत्पन्नज्ञानमप्युपचारेण पदसंज्ञकं श्रुतम् । तस्योपर्येकाक्षरे वृद्धि गते पदसमासः। एवमेकैकाक्षरवद्धिक्रमेण नेतव्यं यावत्संघातं न प्राप्नोति एक विकल्पोनं तत्सवं पदसमासः। तत एकाक्षरे वृद्धि गते संघातः। संख्यातपर्दर्भवति यावदभिः पदैर्नरकगतिः प्ररूप्यते तावदभिर्भवति तस्मादन्नं ज्ञानमपि संघातसंज्ञक, एतस्योपर्यकाक्षरे वृर्षि गते संघातसमासः। एकाक्षरे प्रविष्टे प्रतिपत्ति: स्यात् यावद्भिः पदैरेकगतीन्द्रियकाययोगादयः प्ररुप्यन्ते तावदभिः पदैगहीतैः प्रतिपत्तिश्रुतं भवति, तस्योपर्यकाक्षरे वृद्धि गते प्रतिपत्तिसमासः यावदनुयोगो न भवति । एकाक्षरे वृद्धि गतेऽनियोगो भवति चतुर्दशमार्गणाप्ररूपकस्तत एकाक्षरे वृद्धेऽनियोगसमास:। एकाक्षरेण प्राभृतकं भवति संख्यातानियोगद्वारस्तत एककाक्षरवृद्धिक्रमेण यावत्प्राभुतकं न परिपूर्ण तत्सर्व
इस प्रकार अनन्तभाग, असंख्यातगुण और अनन्तगुण वृद्धि से एक अक्षर होता है। इस प्रकार की असंख्यात लोक मात्र बार षट् स्थान वृद्धि के हो जाने पर उसके अनन्तर जो पर्यायाक्षर समास का अन्तिम विकल्प हो जाता है उसके अनन्तवें भाग अधिक अक्षर नाम का श्रुतज्ञान होता है।
यह कैसे ? क्योंकि द्रव्यश्रत से संबन्धित ऐसे एकाक्षर से उत्पन्न हुए ज्ञान को उपचार से अक्षर कहते हैं। इसके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि हो जाने पर अक्षरसमास होता है। अथवा अक्षर के अनन्तवें भाग प्रमाण वृद्धि के हो जाने पर अक्षरसमास होता है। इस तरह जब तक पदज्ञान प्राप्त न हो तब तक अक्षरसमास ज्ञान ही रहता है। इसके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होने पर पदज्ञान होता है। सोलह सौ चौंतीस करोड़ तिरासी लाख अठत्तर सो अठासी अक्षरों का एक द्रव्य श्रु तपद होता है, उससे उत्पन्न हुए ज्ञान को भी उपचार से पद नामक श्रुतशाम कहा है । उसके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होने पर पदसमास ज्ञान होता है।
___ इस तरह एक-एक अक्षर की वृद्धि के क्रम से जब तक संघात ज्ञान नहीं हो जाता है तब तक सभी को पदसम स कहते हैं । उससे ऊपर एक अक्षर के वृद्धि होने से संघात ज्ञान होता है। जितने पदों से मरकगति का निरूपण होता है उतने पदों का नाम संघात है। इससे उत्पन्न हुए ज्ञान को भी सघात शान कहते हैं। इसके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होने पर संघातसमास होता है। इसमें एकाक्षर मिला देने पर प्रतिपत्ति नाम का श्रुतज्ञान होता है । जितने पदों से एकगति, इन्दिय, काय, योग बादि मार्गणाओं का निरूपण किया जाता है उतने पदों का प्रतिपत्ति नामक श्रतजाम होता है। उसके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि करने पर प्रतिपत्तिसमास ज्ञान होता है । जब तक अनुयोग ज्ञान नहीं हो जावे तब तक प्रतिपत्तिसमास ही कहलाता है । अन्तिम प्रतिपत्तिसमास के ऊपर एक अक्षर की वृद्धि करने पर अनुयोग श्रुतज्ञान होता है। यह चौदह मार्गणाजों का प्ररूपण करता है। इसके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि करने पर अनुयोगसमास ज्ञान होता है। अंतिम अनुयोगसमास के ऊपर एक अक्षर की वृद्धि करने पर प्राभूतक-ज्ञान होता है। संख्यात अनियोग द्वारों से यह ज्ञान होता है। उसके ऊपर एक-एक अक्षर की वृद्धि के
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