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________________ मूलाचारे। क्षीणकषायान्तानि, केवलज्ञाने सयोग्ययोगिसंज्ञके द्वे अतीतगुणस्थानं च, सामायिकच्छेदोपस्थापानसंयमयोःप्रमत्ताद्यनिवृत्त्यन्तानि चत्वारि, परिहारविशुद्धिसंयमे प्रमत्ताप्रमत्तसंज्ञके द्वे सूक्ष्मसाम्परायसंज्ञके संयमे सूक्ष्मसाम्परायिकमेकं, यथाख्यातसंयमे उपशान्ताद्ययोगान्तानि, संयमासंयमे संयतासंयतमेक', असंयमे मिथ्यात्वायसंबतान्तानि, चक्षुर्दर्शना वक्षुर्दर्शनयोमिथ्यादृष्ट्यादिक्षीणकषायान्तानि, अवधिदर्शनेऽसंयतादिक्षीणकायान्तावि, केवलदर्शने सयोगायोगसंज्ञके द्वे अतीतगुणस्थानं च, कृष्णनीलकापोतलेश्यासु मिथ्यादृष्ट्यायसंयतान्तानि, तेजःपालेश्ययोमिथ्यादृष्ट्याद्यप्रमत्तान्तानि, शुक्ललेश्यायां मिथ्यादृष्ट्यादिसयोगान्तानि, कषायसहचरितयोगप्रवृत्त्युपचारेण भव्यसिद्धेषु चतुर्दशापि, अभव्यासिद्धेष्वक मिथ्यादृष्टिसंज्ञक,औपशमिकसम्यक्त्वेऽसंयसायुपशान्त कषायान्तानि, वेदकसम्यक्त्वे असंयताद्यप्रमत्तान्तानि, क्षायिकसम्यक्त्वेऽसंयताद्ययोगान्तानि, सासादमसंबके सासादननामेवमैक, सम्य मिथ्यात्वे सम्यङ् मिथ्यादृष्टिसंज्ञकं, संज्ञिषु मिथ्यादृष्ट्यादिक्षीणकामासानि, स्थान हैं। मति, श्रुत और अवधिज्ञान में असंयतसम्यग्दृष्टि नामक चतुर्थ गुणस्थान से लेकर क्षीणकषाय पर्यन्त नौ गुणस्थान होते हैं। मनःपर्ययज्ञान में प्रमत्त से लेकर क्षीणकषाय पर्यन्त गणस्थान होते हैं। केवलज्ञान में सयोगी और अयोगी ये दो गणस्थान होते हैं। गुणस्थानों से अतीत-सिद्ध अवस्था भी होती है। सामायिक और छेदोपस्थापना-संयम में प्रमत्त से लेकर अनिवृत्तिकरण पर्यन्त चार गणस्थान हैं। परिहारविशुद्धिसंयम में प्रमत्त और अप्रमत्त नामक दो हैं । सूक्ष्मसाम्पराय नामक संयम में सक्षमसाम्पराय नाम का एक (दशम) गणस्थान ही है। यथाख्यातसंयम में उपशान्त से लेकर अयोगीपर्यन्त चार गणस्थान हैं। संयमासंयम में संयतासंयत नामक एक (पाँचवाँ) गणस्थान ही है और असंयम में मिथ्यात्व से लेकर असंयत पर्यन्त चार गुणस्थान हैं। चक्षदर्शन और अचक्षुर्दर्शन में मिथ्यात्व से लेकर क्षीणकषायपर्यन्त बारह हैं। अवधिदर्शन में असंयत से लेकर क्षीणकषायपर्यन्त नौ हैं। केवलदर्शन में सयोगी और अयोगी नामक दो गुणस्थान हैं। गुणस्थान से अतीत-सिद्ध भी हैं। कृष्ण, नील और कापोत इन तीन लेश्याओं में मिथ्यादृष्टि से असंयतपर्यन्त चार हैं। पीत और पद्म लेश्या में मिथ्यात्व से अप्रमत्तपर्यन्त सात हैं। शुक्ल लेश्या में मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगीपर्यन्त तेरह गुणस्थान हैं। यहाँ जो योगप्रवृत्ति पहले कषाय सहित थी वह अब कषाय न होने पर भी है इससे उपचार से शक्ल लेश्या मानी गयी है। __ भव्य सिद्ध जीवों में चौदहों गुणस्थान हैं और अभव्य असिद्ध में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही है। ___ औपशमिक सम्यक्त्व में असयत से लेकर उपशान्तकषाय नामक ग्यारहवें गुणस्थान पर्यन्त आठ हैं। वेदकसम्यक्त्व में असयत से अप्रमत्तपर्यन्त चार हैं । क्षायिक सम्यक्त्व में अस बत से लेकर अयोगीपर्यन्त ग्यारह गुणस्थान हैं । सासादन मे सासादन नाम का एक ही गुणस्थान है । सम्यग्मिथ्यात्व में सम्यग्मिथ्यादृष्टि नामक तीसरा ही गुणस्थान है। सज्ञी जीवों में मिथ्यादृष्टि से लेकर क्षीणकषायपर्यन्त बारह गुणस्थान हैं, असजी जीवों में मिथ्यादृष्टि नामक एक ही गुणस्थान है। १.क मेकमेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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