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पर्याप्स्यधिकारः]
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अथ संख्यातीतायुषो मृत्वा कां गतिं गच्छन्तीत्याशंकायामाह
संखादीदाऊणं संकमणं णियमदो दु देवेसु ।
पयडीए तणुकसाया सव्वेसि तेण बोधवा ॥११७१॥ संख्यातीतायुषां भोगभूमिजानां भोगभूमिप्रतिभागजानां च संक्रमणं मृत्वोत्पाद: नियमतस्तु देवेषु, कुत एतद् यतः प्रकृत्या स्वभावेन तेषां तनवोऽल्पाः कषायाः क्रोधमानमायालोभास्तेन ते देवेषूत्पद्यन्ते इति ज्ञातव्यं नात्र शंका कर्तव्येति ॥११७१॥ अथ केभ्य आगत्य शलाकापुरुषा भवन्ति केभ्यश्च न भवन्तीत्याशंकायामाह
माणुस तिरियाय तहा सलागपुरिसा ण होंति खलु णियमा ।
तेसि अणंतरभवे भजणिज्ज णिव्वुदीगमणं ॥११७२॥ मनूष्यास्तथा तियंचश्च शलाकापुरुषास्तीथंकरचक्रवत्तिबलदेववासुदेवा न भवन्ति नियमात, निर्व तिगमनं तु भाज्यं तेषां कदाचिदनन्तरभवेन तेनैव भवेन वा भवति मनुष्याणां, न तु तिरश्चां युक्तमेतत् निर्व तिगमनकारणं तु भवत्येव तिरश्चामपि सम्यकत्वादिकं तेन न दोष इति ॥११७२॥ अथ मिथ्योपपादः एवम् इत्याशंकायामाह
सण्णि असण्णीण तहा वाणेस य तह य भवणवासीसु ।
उववादो वोधव्वो मिच्छादिट्ठीण णियमाद् ॥११७३॥ असंख्यातवर्ष आयुवाले मरकर किस गति में जाते हैं, उसे ही बताते हैं
गाथार्थ-असंख्यात वर्ष की आयु वालों का जाना नियम से देवों में ही है, क्योंकि उन सभी के स्वभाव से ही मन्दकषायें हैं. ऐसा जानना ॥११७१॥
आचारवृत्ति-असंख्यातवर्ष की आयुवाले भोगभूमिज और भोगभूमिप्रतिभागज जीव मरकर नियम से देवों में ही उत्पन्न होते हैं । ऐसा क्यों? क्योंकि ये स्वभाव से ही मन्दकषायी होते हैं। अर्थात् इनके क्रोध, मान, माया और लोभ कषायें मन्द रहती हैं इसलिए इनकी उत्पत्ति देवों में ही होती है, इसमें शंका नहीं करना चाहिए।
___कहाँ से आकर शलाकापुरुष होते हैं और कहाँ से आकर नहीं होते हैं, ऐसी आशंका होने पर कहते हैं
गाथार्थ-मनुष्य और तिर्यंच मरकर शलाकापुरुष नियम से नहीं होते हैं तथा उसी भव में उनका मोक्षगमन वैकिल्पिक है ॥११७२।।
आचारवृत्ति--मनुष्य और तिर्यंच मरकर तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासूदेव और प्रतिवासुदेव अर्थात् त्रेसठ शलाकापुरुष नहीं हो सकते हैं। उनका उसी भव से मोक्ष प्राप्त करना भजनीय है, अर्थात् मनुष्यों को उसी भव से मुक्ति हो, न भी हो; अगले भव से भी हो न भी हो; किन्तु तिर्यंचों के उसी भव से मुक्ति है ही नहीं यह नियम है। वैसे तिर्यंचों में भी मूक्तिगमन के कारणभूत सम्यक्त्व आदि हो सकते हैं, इसमें कोई दोष नहीं है।
मिथ्यादृष्टियों का जन्म कहाँ होता है सो बताते हैं
गाथार्थ-संज्ञी और असंज्ञी मिथ्यादृष्टि जीवों का जन्म नियम से व्यन्तरों और भवनवासियों में जानना चाहिए ॥११७३॥
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