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________________ २५८] [ मूलाचारे दश, जहणं-जघन्यं निकृष्ट, सामान्यकथनमेतद् द्रव्याथिकशिष्यानुग्रहनिमित्तं विस्तरतः 'सत्रेणोत्तरत्र 'कथनं पर्यायाथिकशिष्यानुग्रहार्थं "सर्वानुग्रहकारी च सतां प्रयासो" यस्ततः सामान्यविशेषात्मकं प्रतिपादनं युक्तमेव सामान्यविशेषात्मकत्वाच्च सर्ववस्तूनां सामान्येन प्रतिपन्ने सति विशेषस्य सुखेनावगति नित्यक्षणिककान्तवादिमतं च निराकृतं भवति । सामान्येन देवानां नारकाणां चोत्कृष्टमायूः त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाणि जघन्यं च देवनारकाणामायुर्दशवर्षसहस्राणीति ॥१११६॥ ___अल्पप्रपंचत्वात्प्रथमतरं तावन्नारकाणां सामान्यसूत्रसूचितं प्रकृष्टमायु:प्रमाणं सर्वपृथिवीनां प्रतिपादयन्नाह एकं च तिण्णि सत्तय दस सत्तरसेव होंति बावीसा। तेसीसमुदधिमाणा पुढवीण ठिदीणमुक्कस्सं ॥१११७॥ एकंच एकं च सर्वत्रोदधिमानानीत्यनेन संबन्धः तिणि-त्रीणि, सत्तय-सप्तच, दस-दश, सत्तरस-सप्तदश एवकारोऽवधारणार्थः,होंति---भवन्ति, बावीसंद्वाविंशतिः, तेत्तीसं--त्रयस्त्रिशत, उवधिमाणाउदधिमानानि, पुढवीणं--पथिवीनारत्नशर्करावालुकापंकधमतमोमहातमःप्रभाणां सप्तानां यथासंख्येन संबन्धः, ठिबीणं-स्थितीनामायुरित्यनुवर्तते तेनायु:स्थितीनां नान्यकर्म स्थितीनां ग्रहणं भवति नापि नरकभूमिस्थितीनामिति, उक्कस्सं-उत्कृष्टम् । रत्नप्रभायां त्रयोदशप्रस्तरेनारकाणा'मायु.स्थितेःप्रमाणमेकसागरोपम, शर्कराप्रभायामेकादशप्रस्तरेऽधोनारकाणां परमायुःस्थितेःप्रमाणं त्रीणि सागरोपमाणि । वालकाप्रभायां नवमप्रस्तरे पर्यायाथिक शिष्यों के प्रति अनुग्रह करने के लिए आगे सूत्रों द्वारा विस्तार से इन सबकी आयु का वर्णन करेंगे। चूंकि सत्पुरुषों का प्रयास सभी जनों पर अनुग्रह करनेवाला होता है, इसलिए सामान्य और विशेष रूप से प्रतिपादन करना युक्त ही है । और फिर, सभी वस्तुएँ सामान्यविशेषात्मक ही हैं । सामान्य से किसी वस्तु को जान लेने पर विशेष का सुखपूर्वक सहज ही ज्ञान हो जाता है । इस सामान्य-विशेष के कथन से नित्यैकान्तवादी और क्षणिककान्तवादी के मतों का निराकरण हो जाता है। अर्थात् इस गाथा में देव-नारकियों की सामान्य आयु कहकर आगे विशेषतः कहेंगे। थोड़ा विस्तार होने से, सबसे पहले नारकियों की सामान्य सूत्र से सूचित उत्कृष्ट आयु का प्रमाण सर्वपृथिवियों में प्रतिपादित करते हैं गाथार्थ-सात नरकों में क्रम से उत्कृष्ट आयु एक, तीन, सात, दश, सत्रह, बाईस और तेतीस सागर प्रमाण है ।।१११७।। __ आचारवृत्ति-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और महातमःप्रभा, क्रमशः ये सात नरकभूमियों के नाम हैं। इन नरकों में रहनेवाले नारकियों की आयु का प्रमाण यहाँ पर कहा गया है। उन नरकभूमियों की स्थिति अथवा वहाँ के नारकियों के अन्य कर्मों की स्थिति का ग्रहण यहाँ नहीं है। रत्नप्रभा नरक में तेरह प्रस्तार हैं। अन्तिम प्रस्तार के नारकियों की उत्कृष्ट आयु एकसागर है । शर्कराप्रभा नरक में ग्यारह प्रस्तार हैं। उनमें से अन्तिम प्रस्तार में नारकियों की उत्कृष्ट आयु तीन सागर है । बालुकाप्रभा नामक १. क संग्रहसूत्रेण २.क उत्तरत्र कथनं च विस्तरसूत्रेण। ३. क नारकाणां परमायु:स्थिते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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