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पर्याप्त्यधिकारः]
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मनुष्या इत्यनुवर्तते, हरिरम्मय वसेसु य-हाररम्यकवंशेषु च, वंशशब्दोऽत्र प्रत्येकमभिसंबध्यते, पंचसु हरिवंशेषु मध्यमभोगभूमिषु पंचसु रम्यकवशेषु च हवति-भवतः, पलिदोवमाणि-पल्योपमानि, द्वे खलु स्फुटं, दोणि-द्वे । तिरिएसु य-तिर्यक्षु च तिरश्चां वा तिर्यकशब्द: 'प्रत्येक भोगभूमिषु संबध्यते, सण्णीणं-संज्ञिनां समनस्कानां "अत्र संज्ञिशब्दो भोगभूमिष असंज्ञिनामभावप्रतिपादकः। भोगभूमिजास्तियंचः संजिन एवेति"। तिणि य-त्रीणि च, तह य-तथा, कुरवगाणं-कौरवकाणां चात्र कुरुशब्द उत्तरकुरुदेवकुरुषु वर्तमानो गृह्यते सामान्यनिर्देशात् । पंचसु च हरिवंशेषु मध्यमभोगभूमिषु पंचसु च रम्यकवर्षे मध्यमभोगभूमिषु च मनुष्याणां तिरश्चां च संज्ञिनां द्विपल्योपमं परमायुः, पंचसूत्तरकुरुषु पंचसु देवकुरुषु चोत्कृष्टभोगभूमिषु मनुष्याणां तिरश्चां च त्रीणि पल्योपमानि परमायुरिति ॥१११५॥ नारकाणां देवानां च परमायुषः स्थिति प्रतिपादयन्नाह
देवेसु णारयेसु य तेत्तीसं होंति उदधिमाणाणि । ___ उक्कस्सयं तु आऊ वाससहस्सा दस जहण्णा ॥१११६॥
स-देवानामणिमाद्यष्टद्धिप्राप्तानां, णारयेस य-नारकाणां च सर्वाशुभकराणाम् अथवा देवेषु नारकेषु च विषये, तेत्तीसं-त्रयस्त्रिशत् त्रिभिरधिकं दशानां त्रयं, होंति-भवन्ति, उदधिमाणाणि सागरोपमाणि, उपकस्सयं त-उत्कृष्टं, तु शब्दोऽवधारणार्थम् ।आऊ-आयुः, वाससहस्सा-वर्षाणां सहस्राणि,बस
___ आचारवृत्ति-हरिवंशों में अर्थात् पाँच हरिक्षेत्रों में मध्यम भोगभूमि है । वहां होनेवाले मनुष्यों की तथा पाँच रम्यकवंश-रम्यकक्षेत्र नामक मध्यम भोगभूमि में होनेवाले मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु दो पल्योपम है। यहाँ गाथा के 'तिर्यच' शब्द को सभी भोगभूमि में घटित करना चाहिए तथा संज्ञी शब्द से ऐसा समझना कि भोगभूमि में असंज्ञी तिर्यंचों का अभाव है अर्थात् भोगभूमिज तिर्यंच संज्ञी ही होते हैं । 'कुरु' शब्द से देवकुरु और उत्तरकुरु दोनों का ग्रहण हो जाता है । पाँच देवकुरु और पाँच उत्तरकुरु में उत्तम भोगभूमि है। वहाँ के मनुष्यों और तिर्यंचों की उत्कृप्ट आयु तीन पल्योपम है।
भावार्थ-हैमवत,हैरण्यवत क्षेत्रों में जघन्य भोगभूमि की व्यस्वथा है । वहाँ के मनुष्य और तिर्यंचों की उत्कृष्ट आयु एक पल्य है । हरिक्षेत्र और रम्यक क्षेत्रों में मध्यम भोगभूमि है। वहाँ के मनुष्यों एवं तिर्यंचों की उत्कृष्ट आयु तीन पल्योपम है। म्लेच्छ खण्ड के मनुष्यों की, कुभोगभूमि के मनुष्यों की तथा भोगभूमि प्रतिभागज मनुष्यों की आयु एक पल्योपम है।
नारकी और देवों की आयु कहते हैं
गाथार्थ-देवों और नारकियों की उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर प्रमाण है और जघन्य आयु दश हजार वर्ष ॥१११६।।
प्राचारवृत्ति-अणिमा आदि ऋद्धियों से संयुक्त देव कहलाते हैं तथा सर्व अशुभ ही करनेवाले नारकी होते हैं । इन देव और नारकियों की उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर प्रमाण और जघन्य आयु दश हजार वर्ष की है । यह सामान्य कथन द्रव्याथिक शिष्यों के अनुग्रह के लिए है।
१. क सर्वभोग-। २. क अवधारणपरः ।
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