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________________ पर्याप्स्यधिकार।] यिकाः, वाससहस्साणि-वर्षसहस्राणि, वावीस--द्वाविंशतिः । शुद्धपृथिवीकायिकानामुत्कृष्टमायुादशवर्षसहस्राणि, खरपृथिवीकायिकानां चोत्कृष्टमायुभविंशतिवर्षसहस्राणि भवन्तीति ॥११०७॥ अप्कायिकतेजःकायिकानामायुःप्रमाण माह सत्त दु वाससहस्सा पाऊ पाउस्स होइ उक्कस्सं । रतिदियाणि तिणि दुतेऊणं होइ उक्कस्सं ॥११०८॥ सत्त बु-सप्तव, वाससहस्सा-वर्षसहस्राणि, आऊ-आयुः, आउस्स-अपां अप्कायिकानां होइ-भवति, उक्कस्सं-उत्कृष्टं, अकायिकानां परमायः सप्तव वर्षसहस्राणि । रत्तिवियाणि-रात्रिन्दिनानि अहोरात्रं, तिणि दु-त्रय एव, तेउणं-तेजसां तेजःकायिकानां, होइ उक्कस्सं-भवत्युत्कृष्टम् । अप्कायिकानां परमायुः सप्तव वर्षसहस्राणि, प्रोणि' रात्रिदिनानि तेज कायिकानां परमायुरिति ॥११०८॥ वायुकायिकानां वनस्पतिकायिकानां च परमायुःप्रमाणमाह तिण्णि दु वाससहस्सा आऊ वाउस्स होइ उक्कस्सं । दस वाससहस्साणि दु वणप्फदीणं तु उक्कस्सं ॥११०६॥ तिणि दु-त्रीणि तु त्रीण्येव नाधिकानि, वाससहस्सा-वर्षसहस्राणि, आऊ-आयुः, वाउत्तवायूनां वायुकायिकानां, होदि उक्कस्सं---भवत्युत्कृष्टम् । दस वाससहस्साणि-दशवर्षसहस्राणि, तुशब्दोऽवधारणार्थः" वणप्फदीणं तु-वनस्पतीनां च वनस्पतिकायानां तु उक्कस्सं-उत्कृष्टमेव । वायुकायिकानामुत्कृष्ठनागुस्त्रीण्येव वर्षसहस्राणि, वनस्पतिकायिकानां तूत्कृष्टमायुर्दशैव वर्षसहस्राणीति ॥११०६॥ कलेन्द्रियाणामायुःप्रमाण माह पृथ्वीकायिक हैं और मृत्तिक आदि खरपृथ्वी हैं । इन शुद्ध पृथ्वीकायिक जीवों की उत्कृष्ट आयु बारह हजार वर्ष है तथा खर-पृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट आयु बाईस हजार वर्ष प्रमाण है। जलकायिक और अग्निकायिक की आयु का प्रमाण कहते हैं गाथार्थ-जलकायिकों की उत्कृष्ट आयु सात हजार वर्ष है। अग्निकायिकों की उत्कृष्ट आयु तीन दिन-रात की है ॥११०८॥ आचारवृत्ति-जलकायिक जीवों की उत्कृष्ट आयु सात हजार वर्ष है और अग्निकायिक जीवों की उत्कृष्ट आयु तीन दिन-रात को है। वायुकायिक और वनस्पतिकायिकों की उत्कृष्ट आयु कहते हैं गाथार्थ-वायुकायिक जीवों की उत्कृष्ट आयु तीन हजार वर्ष है और वनस्पतिकायिक जीवों की उत्कृष्ट आयु दश हजार वर्ष है ॥११०६॥ टीका सरल है। विकलेन्द्रियों की आयु का प्रमाण कहते हैं १. क रात्रिदिवसास्त्रयः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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