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________________ Jain Education International एकेन्द्रिय आदि जीवों के पाई जाने वाली इन्द्रियों के उत्कृष्ट विषय क्षेत्र आदि का दर्शक यन्त्र पर्याप्त्यधिकारः] असंज्ञी एकेन्द्रिय | द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय | चतुरिन्द्रिय | पंचेन्द्रिय संज्ञी पंचें. धनुष से | धनुष से धनुष से विषय क्षेत्र विषय क्षेत्र विषय क्षेत्र विषय योग्यता | आकृति विषय क्षेत्र विषय क्षेत्र विषय क्षेत्र योजन से धनुष योजन धनुष योजना या इंद्रिय ४०० स्पर्शन ८०० १६०० ३२०० ० ६४०० ० ६ ८ प्रकार अबद्ध का स्पर्श, स्पृष्ट अनेक अनियत अर्धचंद्र । ० ५१२, ० ६४ । १२८ २५६ रसना ४ ५विध , रस या खुरपा For Private & Personal Use Only स्पष्ट रूप से ग्रहण करती हैं, चक्षु इन्द्रिय अस्पृष्ट विषय को ही ग्रहण करती है और कर्ण इन्द्रिय स्पष्ट है कि उनमें स्पर्शन, रसना और घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ अपने विषय को अबद्ध इन सबको यन्त्र में देखिए-- अपनी इन्द्रियों का उत्कृष्ट विषय-क्षेत्र बतलाया गया है तथा उनके आकार भी बतलाये गये हैं। विशेषार्थ-यहाँ इन गाथाओं में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक जीवों के अपनीआषाढ मास में मिथुन राशि के अन्त में स्थिर हुए सूर्य का इतना अन्तराल अयोध्या से रहता है। १०० २०० ० ४०० " तिलपाप ० प्राण ० ६ द्विविध गध पंचविध . . . ० ५६५४ ० २६०८/ अस्पृष्ट । दवा मसूर अन्न रूप ७:२० ० । श्रोत्र १२ शब्द तथा स्पृष्ट यवनाली ७स्वर Re] www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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