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________________ पर्याप्त्यधिकारः] [ २२९ रिव तदायत्तं सर्वेषां विष्कम्भायामपरिधिप्रमाणं, परिहिओ-परिधिः परिक्षेपो जम्बूद्वीपस्य परिधिजबूढीपपरिधिः, तिण्णव लक्ख-त्रीण्येव लक्षाणि, सोलहसहस्सं-षोडशसहस्राणि, वे चेव जोयणसया-द्वे चैव योजनानां शते, सत्तावीसा य-सप्तविंशतिश्च योजनानां सर्वत्र संबन्धः, होति-भवन्ति, बोषव्वा-बोद्धव्यानि । जम्बूद्वीपस्य परिधेः, प्रमाणं योजनानां त्रीणि लक्षाणि षोडशसहस्राणि, योजनानां द्वे च शते योजनानां सप्तविंशतिश्च । अथवा भेदेन निर्देशो जम्बूद्वीपपरिधिः योजनानां त्रीणि लक्षाणि षोडशसहस्राणि द्वे शते संप्तविंशतिश्चेति । तथा तिग्णव-त्रीण्येव, गाउआई-गव्यूतानि क्रोशाः, अट्ठावीसं च-अष्टाविंशतिश्च, धणु-धनुषां, सदं-शत, भणियं-भणितं, तेरस य-त्रयोदशानि च, अंगुलाई-अंगुलानि च, अद्धगलमेव -अर्धागुलमेव च, सविसेस-सविशेषो यवः सातिरेक.किचिदेव तेन विशेषेण सह वर्तत इति सविशेषमीगुलेन संबन्धः । त्रीणि गव्यूतानि धनुषां शतमष्टाविंशत्यधिकं त्रयोदशानि चांगुलानि सविशेषमर्धांगुलं चेति ।।१०७४-१०७५॥ जम्बूद्वीपमादिं कृत्वा कियतां द्वीपानां नामान्याह जंबूदीवो धादइसंडो पुक्खरवरो य तह दीवो। वारुणिवर खीरवरो य घिदवरो खोदवरदीवो ॥१०७६॥ गंदीसरो य अरुणो अरुणभासो य कुंडलवरो य । संखवर रजग भुजगवर कुसवर कुंचवरदीवो ॥१०७७॥ जम्बूदीवो-जम्बूद्वीपः प्रथमो द्वीपः, धावइसडो-धातकीखण्डो द्वितीयो द्वीपः, पुक्खरवरोपुष्करवरस्तृतीयो द्वीपः, तह-तथा, दीवो-द्वीपः, वारुणिवर-वारुणीवरश्चतुर्थो द्वीपः, खीरवरो-क्षीरवरः पंचमो द्वीपः, घिदवरो- घृतवरः षष्ठो द्वीपः, खोदवरो-क्षौद्रवरः सप्तमो द्वीपः नंदीसरो य-नंदीश्वरश्चाष्टमो द्वीपः, अरुणो-अरुणाख्यो नवमो द्वीपः, अरुणभासो य-अरुणभासश्च दशमो द्वीपः, कुंडलवरोयकुण्डलवरश्चैकादशो द्वीपः, संखवर-शंखवरो द्वादशो द्वीपः, रुजग-रुचकस्त्रयोदशो द्वीपः, भुजगवरो और एक जो प्रमाण है । जम्बूद्वीप से उपलक्षित यह जम्बूवृक्ष असंख्यात द्वीप-समुद्रों के मध्य में नाभि के समान है। सभी द्वीपसमुद्रों के विस्तार-आयाम और परिधि का प्रमाण इस जम्बूद्वीप के आश्रित है । इस प्रकार से इन दो गाथाओं में जम्बूद्वीप की परिधि का प्रमाण कह देने से उस द्वीप का एवं सभी द्वीप और समुद्रों का विस्तार तथा परिधि का प्रमाण निकाल लेना चाहिए, क्योंकि आगे के सभी समुद्र व द्वीप एक-दूसरे को वेष्टित करते हुए तथा दूने-दूने प्रमाणवाले होते गये हैं। जम्बूद्वीप को आदि में करके कितने हो द्वीपों के नाम कहते हैं गाथार्थ-जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड, पुष्करवर, वारुणीवर, क्षीरवर, घृतवर, क्षौद्रवर, नन्दीश्वर, अरुण, अरुणभास, कुण्डलवर, शंखवर, रुचक, भुजगवर, कुशवर और क्रौंचवरइस प्रकार से सोलह द्वीप हैं ।।१०७६-१०७७।। प्राचारवृत्ति-पहला जम्बूद्वीप, दूसरा धातकीखण्ड द्वीप, तीसरा पुष्करवरद्वीप, चौथा वारुणीवरद्वीप, पाँचवां क्षीरवरद्वीप, छठा घृतवरद्वीप, सातवां क्षौद्रवरद्वीप, आठवाँ नन्दीश्वरद्वीप, नवम अरुणद्वीप, दसवां अरुणभासद्वीप, ग्यारहवाँ कुण्डलवरद्वीप, बारहवाँ शंखवर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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