________________
ree उपोद्घात ]
"श्रीमानशेषन र नायक वंदितांत्रीः श्रीगुप्तिगुप्त ( १ ) इति विश्रुतनामधेयः ॥ भद्रबाहु (२) मुनिपुंगव पट्टपद्मः, सूर्यः स वो दिशतु निर्मल संघबृद्धिम् ॥ १ ॥ श्रीमूलसंघेऽजनि नन्दिसंघस्तस्मिन् बलात्कारगणोऽतिरम्यः । तत्राऽभवत्पूर्वपदांशवेदी श्रीमाघनन्दी (३) नरदेववन्द्यः ॥ २ ॥ पट्टे तदीये मुनिमान्यवृत्तो जिनादिचन्द्र (४) स्समभूदतन्त्रःततोऽभवत्पंचसुनामधाम श्रीपद्मनन्दी मुनिचक्रवर्ती ॥ ३ ॥ आचार्य कुन्दकुन्दाख्यो (५) वक्रग्रीवो महामुनिः । एलाचार्यो गृद्धपिच्छः पद्मनन्दीति तन्नुतिः ॥ ४ ॥ तत्वार्थ सूत्रकर्तत्व प्रकटीकृतसन्मनाः ।
उमास्वाति (६) पदाचार्यो मिथ्यात्वतिमिरांशुमान् ॥ ५ ॥
पद्मनन्दी गुरुर्जातो बलात्कारगणाग्रणी ।
पाषाणघटिता येन वादिता श्रीसरस्वती ॥
ऊर्जयंत गिरौ तेन गच्छः सारस्वतोऽभवत् ।
अतस्तस्मै मुनीन्द्राय नमः श्रीपद्मनन्दिने ।। ६३ ।।'
अर्थात् समस्त राजाओं से पूजितपादपद्मवाले, मुनिवर 'भद्रबाहु' स्वामी के पट्ट-कमल को उद्योत करने में सूर्य के समान श्री 'गुप्तिगुप्त' मुनि आप लोगों को शुभसंगति दें । श्री मूलसंघ में
संघ उत्पन्न हुआ। इस संघ में अतिरमणीय बलात्कार गण हुआ। उस गण में पूर्व के जानने वाले, मनुष्य व देवों से वन्द्य, श्री 'माघनन्दिस्वामी' हुए। उनके पट्ट पर मुनिश्रेष्ठ 'जिनचन्द्र' हुए और इनके पट्ट पर पाँच नामधारक मुनिचक्रवर्ती श्री ' पद्मनन्दि स्वामी' हुए । कुन्दकुन्द वक्रग्रीव, एलाचार्य, गृद्धपिच्छ और पद्मनन्दी उनके ये पांच नाम थे । (ये ही कुन्दकुन्दाचार्य समयसार आदि ग्रन्थों के कर्ता हैं ।)
पुनः उनके पट्ट पर दशाध्यायी तत्त्वार्थसूत्र के प्रसिद्ध कर्ता, मिथ्यात्व तिमिर के लिए सूर्य के समान 'उमास्वाति' ( उमास्वामी) आचायें हुए | इत्यादि
[e
इसी क्रम से १०२ आचार्यों की परम्परा बताकर अन्त में श्री कुन्दकुन्द स्वामी की विशेषताओं का स्मरण करते हुए उन्हें नमस्कार किया गया है
"श्री पद्मनन्दी (कुन्दकुन्द) गुरु ने बलात्कारगण में अग्रसर होकर पट्टारोहण किया है। उन्होंने पाषाणघटित सरस्वती को ऊर्जयन्तगिरि पर वादी के साथ वादित कराया (बुलवाया) है, तब से ही सारस्वतगच्छ चला । इसी उपकृति के स्मरणार्थ उन श्री पद्मनन्दी मुनि को मैं नमस्कार करता हूँ ।"
Jain Education International
इस श्लोक से वृन्दावन कवि की व पंक्तियाँ स्मरण में आये बिना नहीं रहती हैं जो कि उन्होंने गुरु के मंगलाष्टक में कही हैं
संघ सहित श्री कुन्दकुन्द गुरु वन्दन हेत गये गिरनार ।
वाद पर्यो जँह संशयमति सों साक्षी वदी अम्बिकाकार |
१. 'तीर्थंकर पहावीर और उनकी आचार्य परम्परा' पु० ४, पृ० ३६३-३६६ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org