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________________ १५२ [मूलाधारे जह कोइ सद्विवरिसो तीसदिवरिसे णराहिवो जाओ। उभयत्थ जम्मसद्दो वासविभागं विसेसेइ ॥६८०॥ यथा कश्चित्पुरुषः षष्टिवर्षः षष्टिसंवत्सरप्रमाणायुस्त्रिशविर्षगतैर्नराधिप: संजातो राजाऽभूदत उभयत्र पर्याये राज्यपर्याये तदभावे च जन्मशब्दो वर्षविभाग संवत्सरक्रम विशेषयति राज्यपर्याये तदभावपर्याये च वर्तन्ते न तत्र सर्वथा भेदं करोति सामान्यविशेषात्मकत्वात्सर्वपदार्थानां यतः सर्वथा नित्यक्षणिके चार्थक्रियाया अभावादर्थक्रियायाश्चाभावे सर्वेषामभाव: स्यादभावस्य च न 'ग्राहकः प्रमाणाभावादिति ॥१८ ॥ दृष्टान्तं दार्टान्तेन योजयन्नाह एवं तु जीवदव्वं अणाइणिहणं विसेसियं णियमा। रायसरिसो दु केवलपज्जानो तस्स दु विसेसो ॥६८१॥ यथा जन्मशब्दो राज्ययुक्तकाले राज्याभावकाले च, एवमेव जीवद्रव्यमनादिनिधनं सर्वकालमजीव ने किया है, अन्य ने नहीं, तो क्यों ? ऐसी आशंका होने पर कहते हैं गाथार्थ-जैसे कोई साठ वर्ष का मनुष्य तीस वर्ष की आयु में राजा हो गया। दोनों अवस्थाओं में होनेवाला जन्म शब्द वर्ष के विभाग की विशेषता प्रकट करता है| ६०॥ ___ आचारवत्ति-जैसे किसी मनुष्य की आयु साठ वर्ष की है और वह तीस वर्ष की उम्र में राजा हो गया, उसकी उन दोनों पर्यायों में, अर्थात् राज्य की अवस्था में और उसके पहले की अवस्था में, जो यह जन्म शब्द है वह केवल वर्षों के क्रम को पृथक करता है अर्थात् वह जन्म शब्द दोनों अवस्थाओं में विद्यमान है, वह वहाँ पर भेद नहीं करता है क्योंकि सभी पदार्थ सामान्य-विशेषात्मक हैं। सर्वथा नित्य अथवा सर्वथा क्षणिक पदार्थ में अर्थक्रिया का अभाव है और उनमें अर्थक्रिया के न हो सकने से उन सभी का ही अभाव हो जाता है तथा अभ ग्रहण करनेवाला कोई प्रमाण नहीं है क्योंकि वैसे प्रमाण का अभाव है। भावार्थ-जिसका जन्म हुआ है वही राजा हुआ है अतः उसके राजा होने के पहले और अनन्तर-दोनों अवस्थाओं में 'जन्म' शब्द का प्रयोग होता है । यद्यपि ये दोनों अवस्थाएँ भिन्न हैं किन्तु जिसकी हैं वह अभिन्न है । इससे प्रत्येक वस्तु द्रव्यरूप से एक है तथा नाना पर्यायों में भिन्न-भिन्न है ऐसा समझना। वैसे ही एक जीव इन परिवर्तनों को करता रहता है उसकी नाना पर्यायों में भेद होने पर भी जीव में भेद नहीं रहता है। दृष्टान्त को दार्टान्त में घटित करते हुए कहते हैं गाथार्थ- इसी प्रकार से जीवद्रव्य अनादि-निधन है। वह नियम से विशेष्य है। किन्तु उसकी पर्याय केवल विशेष है जो कि राजा के सदृश है ।।९८१।। आचारवृत्ति-जैसे जन्म शब्द राज्य से युक्त काल में और राज्य के अभावकाल में, १.क० च ग्राहकप्रमाणाभावात् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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