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________________ अनगारभावनाधिकारः ] अनगाराणां पर्यायनामान्याह--- समणोत्ति संजदोत्ति य रिसि मणि सात्ति वीदरागोत्ति । णामाणि सुविहिदाणं अणगार भदंत तोत्ति ॥८८८॥ 'यत्किचन्मुनय: क्वचिदृष य इत्येवमादिप्रतिपादितास्तेषां कथं पर्यायनामान्यत आह-श्रमण इति श्रमयंत्यात्मानं तपोभिरिति श्रमणाः, संयता इति संयमयन्तीन्द्रियाणि कषायाँश्च संयता:, ऋषय इति चार्षयन्ति गमयन्ति सर्वपापानि ते ऋषयोऽथवार्षपन्ति प्राप्नुवन्ति सप्तर्झरिति ऋषयः, मन्यन्ते बुध्यन्ते स्वपरार्थसिद्धिमिति मुनयोऽथवा मतिश्रतावधिमनःपर्ययकेवलज्ञानर्युक्ताः मुनयः, साधव इति सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि साधयन्तीति साधवः, वीतरागा इति वीतो विनष्टो रागो येषां ते वीतरागाः, नामान्येतानि संज्ञारूपाणि सुविहितानां सुचारित्राणां । अनगारा न विद्यतेऽगारादिकं येषां तेऽनगारा विमुक्तसर्वसंगाः, भदंताः सर्वकल्याणानि प्राप्त अब अनगारों के पर्यायवाची नामों को कहते हैं गाथार्थ---श्रमण, संयत, ऋषि, मुनि, साधु, वीतराग, अनगार, भदन्त, दान्त और यति ये सम्यक् आचरण करनेवाले मुनियों के नाम हैं ॥८८८॥ प्राचारवत्ति-जो कहीं पर मुनि, कहीं पर ऋषि इत्यादि शब्दों से प्रतिपादित हुए हैं उनके पर्यायवाची नाम कौन-कौन हैं ? सो ही बताते हैं श्रमण-जो तपश्चरण द्वारा अपनी आत्मा को श्रान्त करते हैं वे श्रमण हैं। संयत-जो पांचों इन्द्रियों और कषायों को संयमित-नियन्त्रित करते हैं वे संयत हैं। ऋषि-जो सर्व पापों को नष्ट करते हैं अथवा सात प्रकार की शुद्धियों को प्राप्त करते हैं वे ऋषि कहलाते हैं। मुनि-जो स्व-पर के अर्थ की सिद्धि को मानते हैं-जानते हैं वे मुनि हैं । अथवा मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ज्ञान से युक्त मुनि कहलाते हैं। साधु-सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की जो साधना करते हैं वे साधु कहलाते हैं। वीतराग-वीत-नष्ट हो गया है राग जिनका वे वीतराग कहलाते हैं। अनगार नहीं हैं अगार-गृह आदि जिनके वे सर्व परिग्रह से रहित मनुष्य अनगार कहलाते हैं। भदन्त-सर्व कल्याणों को प्राप्त हुए भदन्त कहलाते हैं। दान्त–पाँचों इन्द्रियों के निग्रह करनेवाले मुनि दान्त होते हैं। यति-तेरह प्रकार के चारित्र में प्रयत्न करते हैं इसलिए यति कहलाते हैं, अथवा उपशमश्रेणी और क्षपक श्रेणी में आरोहण करने में तत्पर हुए यति नाम से कहे जाते हैं । सम्यक् चारित्र को धारण करनेवाले मुनियों के ये सब पर्यायवाची नाम कहे जाते हैं। भावार्थ-इस अनगार भावना सूत्र में आचार्य देव ने दश शुद्धियों का वर्णन किया हैं १. २० ये क्वचिन्मुनयः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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