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________________ अनगार भावनाधिकारः ] यद्भवत्यविवर्णरूपं प्रासुकं सम्मूर्छनादिरहितं निर्जीवं जंतुरहितं च प्रशस्तं मनोहरं, एषणासमितिविशुद्धं गोचरा भिक्षावेलायां, लब्ध्वा पाणिपात्रेषु भुंजत इति ।। ८२३ || तथा--- जं होज्ज श्रविष्वण्णं पासुग' पसत्थं तु एसणासुद्धं । भुजति पाणिपत्त े लक्षूण य गोयरग्गम्मि ॥८२३॥ जं होज्ज बेहिश्रं तेहिश्रं च वेवण्णजंतुसंसिद्ध । अप्पा तु च्चातं भिक्खं मुणी विवज्जति ॥ ८२४ ॥ यद्भवति यहजातं त्र्यहजातं द्विदिनभवं त्रिदिनभवं च विवर्णरूपं स्वभावचलितं, जंतुसम्मिश्र मागंतुकैः सम्मूर्छनजैश्च जीवैः सहितमप्रासुकमिति ज्ञात्वा तां भिक्षां मुनयो विवर्जयन्तीति ॥ ६२४|| विवर्जनीयद्रव्यमाह - [ ६७ Jain Education International जं पुष्फिय किण्णइदं दट्ठूणं पूप-पप्पडादीणि । वज्जति वज्जणिज्जं भिक्खू अप्पासुयं जं तु ॥८२५ ॥ यत्पुष्पितं नीलकृष्ण श्वेतपीतादिरूपजातं, क्लिन्नं कुथितं दृष्ट्वा अपूप-पर्पटादिकं वर्जनीयं लब्धमपि गाथार्थ - जो चलित रस रहित, प्रासुक, प्रशस्त और एषणा समिति से शुद्ध है उसे आहार के समय प्राप्त कर पाणिपात्र से आहार करते हैं | ||२३|| आचारवृत्ति - जो विकृत -- खराब नहीं हुआ है वह अविवर्ण है । संमूर्च्छन आदि रहित, निर्जीव, जन्तुरहित भोजन प्रासुक है, मनोहर भोजन प्रशस्त है । अर्थात् जो ग्लानि पैदा करनेवाला नहीं है । एषणा समिति के छयालीस दोष और बत्तीस अन्तरायों से रहित है । ऐसा भोजन आहार की बेला में प्राप्त करके वे मुनि अपने पाणिपात्र से ग्रहण करते हैं । उसी प्रकार से और भी बताते हैं १. क० द० पासुय गाथार्थ - जो दो दिन का या तीन दिन का है, चलित स्वाद है, जन्तु से युक्त है, अप्रासुक है उसको जानकर मुनि उस आहार को छोड़ देते हैं | || ८२४ || आचारवृत्ति - जो भोजन दो दिन का हो गया है या तीन दिन का हो गया है, जो स्वभाव से चलित हो जाने से विवर्ण रूप हो गया है, जो आगंतुक सम्मच्छेन जीवों से सहित है, अप्रासु है ऐसा जानकर वे मुनि उस भिक्षा को छोड़ देते हैं । छोड़ने योग्य पदार्थों को बताते हैं गाथार्थ - फफूंदी सहित, बिगड़े हुए पुआ, पापड़ आदि देखकर तथा जो अासुक हैं, छोड़ने योग्य हैं, मुनि उन सबको छोड़ देते हैं । । ८२५|| आचारवृत्ति - जो खाद्य पदार्थ पुष्पित अर्थात् नीले, काले, सफेद या पीले आदि रंग के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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