________________
षडावश्यकाधिकारः]
[४८७ लंबोत्तरदोषो भवति । तथा यस्य कायोत्सर्गस्थस्य स्तनयोष्टिरात्मीयो स्तनौ यः पश्यति तस्य स्तनदृष्टिनामा दोषः । तथा यः कायोत्सर्गस्थो वायस इव काक इव पार्श्व पश्यति तस्य वायसदोषः । तथा यः खलीनपीडितोऽश्व इव दन्तकटकटं मस्तकं कृत्वा कायोत्सर्ग करोति तस्य खलीनदोषः । तथा यो युगनिपीडितवलीवर्दवत् ग्रीवां प्रसार्य तिष्ठति कायोत्सर्गेण तस्य युगदोषः । तथा यः कपित्थफलवन्मुष्टि कृत्वा कायोत्सर्गेण तिष्ठति तस्य कपित्थदोषः।।६७०॥
तथा
शिरःप्रकंपितं कायोत्सर्गेण स्थितो यः शिरः प्रकंपयति चालयति तस्य शिर:प्रकंपितदोषः, मूक इव कायोत्सर्गेण स्थितो मुखबिकारं नासिकाविकारं च करोति तस्य मकितदोषः, तथा यः कायोत्सर्गेण स्थि गणनां करोति तस्यांगुलिदोषः, तथा भ्रू विकारः कायोत्सर्गेण स्थितो यो भ्रू विक्षेपं करोति तस्य भ्रू विकारदोषः पादांगुलिनर्त्तनं वा, तथा यो वारुणीपायीव-सुरापायीवेति घूर्णमानः कायोत्सर्ग करोति तस्य वारुणीपायीदोषः, तस्मादेतान् दोषान् कायोत्सर्गेण स्थितः सन् परिहरेद्वर्जयेदिति ॥६७१॥
तथेमांश्च दोषान् परिहरेदित्याह
त्सर्ग में स्थित होकर शरीर को अधिक ऊंचा करना या अधिक झुकाना सो लम्बोत्तर दोष है।
६. स्तनदष्टि-कायोत्सर्ग में स्थित होकर जिसकी दृष्टि अपने स्तनभाग पर रहती है उसके स्तनदृष्टि नाम का दोष होता है ।
१०. वायस-कायोत्सर्ग में स्थित होकर कौवे के समान जो पार्श्वभाग को देखते हैं उनके वायस दोष होता है।
११. खलीन-लगाम से पीडित हए घोड़े के समान दाँत कटकटाते हुए मस्तक को करके जो कायोत्सर्ग करते हैं उनके खलीन दोष होता है।
१२. युग-जूआ से पीड़ित हुए बैल के समान गर्दन पसार कर जो कायोत्सर्ग से स्थित होते हैं उनके यह युग नाम का दोष होता है।
१३. कपित्थ-जो कपित्थ-कैथे के फल के समान मुट्ठी को करके कायोत्सर्ग में स्थित होते हैं उनके यह कपित्थ दोष होता है।
१४. शिरःप्रकंपित-कायोत्सर्ग में स्थित हुए जो शिर को कंपाते हैं उनके शिर:प्रकंपित दोष होता है।
१५. मूकत्व-कायोत्सर्ग में स्थित होकर जो मूक के समान मुखविकार व नाक सिकोड़ना करते हैं उनके मूकित नाम का दोष होता है।
१६. अंगुलि-जो कायोत्सर्ग से स्थित होकर अंगुलियों से गणना करते हैं उनके अंगुलि दोष होता है।
१७. ध्र विकार-जो कायोत्सर्ग से खड़े हुए भौंहों को चलाते हैं या पैरों की अंगुलियाँ नचाते हैं उनके भ्र विकार दोष होता है।
१८. वारुणीपायी-मदिरापायी के समान झूमते हुए जो कायोत्सर्ग करते हैं उनके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org