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________________ ४६८] प्रत्याख्यायकस्वरूपं प्रतिपादयन्नाह प्राणाय जाणणाविय उवजुत्तो मूलमज्झणिद्देसे । सागारमणागारं अणुपाखेतो बढधिदीग्रो ॥६३६॥ आणाविय आज्ञया गुरूपदेशेनाहदाद्याज्ञया चारित्रश्रद्धया, जाणणाविय ज्ञापकेन गुरुनिवेदनेनाथवा परमार्थतो ज्ञात्वा दोषस्वरूपं तमोहेतुं वाह्याभ्यन्तरं प्रविश्य ज्ञात्वाऽपि चोपयुक्तः षट्प्रकारसमन्वितः मूले आदी ग्रहणकाले मध्ये एध्यकाले निर्देशे समाप्तौ सागारं गार्हस्थ्यं संयतासंयतयोग्यमथवा साकारं सविकल्प भेदसहितं अनागारं संयमसमेतोद्भवं यति प्रतिबद्धमथवाऽनाकारं निर्विकल्पं सर्वथा परित्यागमनुपालयन रक्षयन् दृढधतिकः सदृढ धैर्यः, मूलमध्यनिर्देशे साकारमनाकारं च प्रत्याख्यानमुपयुक्तः सन् आज्ञया सम्यग्विवेकेन वाऽनुपालयन् दृढधतिको यो भवति स एष प्रत्याख्यायको नामेति सम्बन्धः । उत्तरेणाथवा मूलमध्यनिर्देश आज्ञयोपयुक्तः साकारमनाकारं च प्रत्याख्यानं च गुरु ज्ञापयन् प्रतिपादयन् अनुपालयंश्च दृढधतिकः प्रत्याख्यायको भवेदिति ॥६३६॥ शेषं प्रतिपादयन्नाह प्रत्याख्यायक का स्वरूप प्रतिपादित करते हैं गाथार्थ-आज्ञा से और गुरु के निवेदन से उपयुक्त हुआ क्रिया के आदि और अन्त में सविकल्प और निर्विकल्प संयम को पालन करता हुआ दृढ़ धैर्यवान् साधु प्रत्याख्यायक होता है ॥६३६॥ ___आचारवृत्ति-आज्ञा-गुरु का उपदेश, अहंत आदि की आज्ञा और चारित्र की श्रद्धा ये आज्ञा शब्द से ग्राह्य हैं । ज्ञापक-बतलाने वाले गुरु । इस तरह गुरु के उपदेश आदि रूप आज्ञा से और गुरु के कथन से पाप रूप अन्धकार के हेतुक दोष के स्वरूप को परमार्थ से जानकर और उसके बाह्य-अभ्यन्तर कारणों में प्रवेश करके जो मुनि नाम, स्थापना आदि छह भेद रूप प्रत्याख्यानों से समन्वित हैं वह साधु प्रत्याख्यान के मूल-ग्रहण के समय, उसके मध्यकाल में और निर्देश-उसकी समाप्ति में सागार--संयतासंयत गहस्थ के योग्य और अनगार-संयमयुक्त यति से सम्बन्धित अथवा साकार-सविकल्प-भेद सहित और अनाकारनिर्विकल्प अर्थात् सर्वथा परित्याग रूप प्रत्याख्यान की रक्षा करता हुआ दृढ़ धैर्यसहित होने से प्रत्याख्यायक है। अर्थात् जो साधु त्याग के अदि, मध्य और अन्त में साकार व अनाकार प्रत्याख्यान में उद्यमशील होता हुआ गुरुओं की आज्ञा या सम्यक् विवेक से उसका पालन करता हुआ दृढ़धैर्यवान है वह प्रत्याख्यायक कहलाता है ऐसा अगली गाथा से सम्बन्ध कर लेना चाहिए । अथवा मूल, मध्य और अन्त में प्रत्याख्यान का पालन करनेवाला, गुरु की आज्ञा को धारण करनेवाला साधु भेदसहित और भेदरहित प्रत्याख्यान को गुरु को बतलाकर उसको पालता हुआ धैर्यगुणयुक्त है वह प्रत्याख्यायक है । शेष को बतलाते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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