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________________ estateerfधकारः ] तिब्वो रागो य दोसो य उदिण्णा जस्स जंतुणो । भावलोगं वियाणाहि श्रणंत जिणदेसिदं ।। ५५२॥ यस्य जन्तोरतीत्री रागद्वेषौ प्रीतिविप्रीती उदीर्णो उदयमागतो तं भावलोकं विजानीहीति ॥ ५५४ ॥ पर्यायलोकमाह दव्वगुणखेत्तपज्जय भवाणुभावो य भावपरिणामो । जाण चउव्विहमेयं पज्जयलोगं समासेण ॥ ५५३ ॥ [ ४१७ द्रव्याणां गुणा ज्ञानदर्शन सुखवीर्य कर्तृत्वभोक्तृत्व कृष्ण नील शुक्ल रक्तपीतगतिकारकत्वस्थितिकारकत्वावगाहनागुरुलघुवर्तनादयः । क्षेत्रपर्यायाः सप्तनरकपृथ्वी प्रदेश पूर्वविदेहापर विदेहभरत रावतद्वीपसमुद्रत्रिस्वर्गभूमिभेदादयः । भवानामनुभवः आयुषो जघन्यमध्यमोत्कृष्टविकल्पः । भावो 'नाम परिणामोऽसंख्यातलोक प्रदेशमात्रः शुभाशुभरूपः कर्मादाने परित्यागे वा' समर्थः । द्रव्यस्य गुणाः पर्यायलोकः, क्षेत्रस्य पर्यायाः पर्यायलोकः भवस्यानुभवाः पर्यायलोकः भावो नाम परिणामः पर्यायलोकः । एवं चतुविधं पर्यायलोकं समासेन जानीहीति ॥ ५५३ ॥ गाथार्थ - तीव्र राग और द्वेष जिस जीव के उदय में आ गये हैं उसे तुम अनन्तजिन के द्वारा कथित भावलोक जानो ।। ५५२ । चारवृत्ति - जिस जीव के तीव्र राग-द्वेष उदय को प्राप्त हुए हैं, अर्थात् किसी में प्रीति, किसी में अप्रोति चल रही है उन उदयागत भावों को ही भावलोक कहते हैं । पर्यायलोक को कहते हैं गाथार्थ - द्रव्यगुण, क्षेत्र पर्याय, भवानुभाव और भाव परिणाम, संक्षेप से यह चार प्रकार का पर्यायलोक जानो ।। ५५३ ।। Jain Education International श्राचारवृत्ति - द्रव्यों के गुण - ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, कर्तृत्व और भोक्तृत्व ये जीव गुण हैं । कृष्ण, नील, शुक्ल, रक्त और पीत ये पुद्गल के गुण हैं । गतिकारकत्व धर्म द्रव्य का है। स्थितिकारकत्व यह अधर्म द्रव्य का गुण है । अवगाहनत्व आकाश द्रव्य का गुण है । अगुरुलघु गुण सब द्रव्यों का गुण है और वर्तना आदि काल का गुण है । क्षेत्रपर्याय - सप्तम नरक पृथ्वी के प्रदेश, पूर्वविदेह, अपरविदेह, भरतक्षेत्र ऐरावतक्षेत्र, द्वीप, समुद्र, त्रेसठ स्वर्गपटल इत्यादि भेद क्षेत्र की पर्यायें हैं । भवानुभाव - आयु के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेद भवानुभाव हैं । भावपरिणाम - भाव अर्थात् परिणाम ये असंख्यात लोक प्रदेश प्रमाण हैं, शुभ-अशुभरूप हैं । ये कर्मों को ग्रहण करने में अथवा कर्मों का परित्याग करने में समर्थ हैं । अर्थात् आत्मा के शुभ-अशुभ परिणामों से कर्म आते हैं तथा उदय में आकर फल देकर नष्ट भी हो जाते हैं । द्रव्य के गुण पर्यायलोक हैं, क्षेत्र की पर्यायें पर्यायलोक हैं, भव का अनुभव पर्यायलोक है और भावरूप परिणाम पर्यायलोक हैं । इस प्रकार संक्षेप से पर्यायलोक चार प्रकार का है, ऐसा जानो । इस तरह नव प्रकार के निक्षेप से नवप्रकार के लोक का स्वरूप कहा गया है । १ क नाम अनुभवपर्यायः प । २ क वा असमर्थः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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