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मावश्यकाधिकारः ]
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सामायि नियुक्ति सामायिकनिरवयवोपायं वक्ष्ये यथाक्रमं समासेनाचार्यपरंपरया यथागतमानुपूर्व्या । अधिकारक्रमेण पूर्वं यथानुक्रमं सामायिककथनविशेषणं पाश्चात्यानुपूर्वीग्रहणं यथागतविशेषणमिति कृत्वा न पुनरुक्तदोषः ।।५१७ ।।
सामायिकनिर्युक्तिरपि षट्प्रकारा तामाह
णामवणा दव्वे खेत्ते काले तहेव भावे य । सामाइ एसोणिक्खेप्रो छव्विम्रो णेओ ।। ५१८ १.
अथवा निक्षेपविरहितं शास्त्रं व्याख्यायमानं वक्तुः श्रोतुश्चोत्पथोत्थानं कुर्यादिति सामायिकनिर्युक्तिनिक्षेपो वर्ण्यते - नामसामायिकनिर्युक्तिः, स्थापनासामायिकनिर्युक्तिः, द्रव्यसामायिकनिर्युक्तिः, क्षेत्रसामायिकनिर्युक्तिः, कालसामायिकनिर्युक्तिः, भावसामायिकनिर्युक्तिः । नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकालभावभेदेन सामायिक एष निक्षेप उपाय: षट्प्रकारो भवति ज्ञातव्यः । शुभनामान्यशुभनामानि च श्रुत्वा रागद्वेषादिवर्जनं नामसामायिकं नाम । काश्चन स्थापना: सुस्थिताः सुप्रमाणाः सर्वावयवसम्पूर्णाः सद्भावरूपा मन आह्लादकारिण्यः । काश्चन पुनः स्थापना दुस्थिताः प्रमाणरहिताः सर्वावयवैरसम्पूर्णाः सद्भावरहितास्तास्तासूपरि रागद्वेषयोरभावः स्थापनासामायिकं नाम । सुवर्णरजतमुक्ताफलमाणिक्यादिमृत्तिकाकाष्ठकंटकादिषु समदर्शनं रागद्वेषयोर
श्राचारवृत्ति-अधिकार के क्रम से संक्ष ेप में मैं आचार्य परम्परा के अनुरूप अविच्छिन्न प्रवाह से आगत सामायिक के सम्पूर्ण उपाय रूप इस प्रथम आवश्यक को कहूँगा ।
सामायिक नियुक्ति के भी छह भेद कहते हैं—
गाथार्थ – नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव सामायिक में यह छह प्रकार का निक्षेप जानना चाहिए ।। ५१८ ।।
श्राचारवृत्ति - अथवा निक्षेप रहित शास्त्र का व्याख्यान यदि किया जाता है तो वह वक्ता और श्रोता दोनों को ही उत्पथ में - गलत मार्ग में पतन करा देता है इसलिए सामायिक निर्युक्ति में निक्षेप का वर्णन करते हैं । नाम सामायिक निर्युक्ति, स्थापना सामायिक निर्युक्ति, द्रव्य सामायिक निर्युक्ति, क्षेत्र सामायिक नियुक्ति, काल सामायिक नियुक्ति और भाव सामायिक निर्युक्ति इस तरह नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से सामायिक में यह निक्षेप अर्थात् जानने का उपाय छह प्रकार का समझना चाहिए । उसे ही स्पष्ट करते हैं-
शुभ नाम और अशुभ नाम को सुनकर राग-द्वेष आदि का त्याग करना नाम सामायिक है ।
कुछेक स्थापनाएँ- मूर्तियाँ सुस्थित हैं, सुप्रमाण हैं, सर्व अवयवों से सम्पूर्ण हैं, सद्भावरूप - तदाकार हैं और मन के लिए आह्लादकारी हैं । पुनः कुछ एक स्थापनाएँ दु:स्थित हैं, प्रमाण रहित हैं, सर्व अवयवों से परिपूर्ण नहीं हैं और सद्भाव रहित - अतदाकार हैं । इन दोनों प्रकार की मूर्तियों में राग-द्व ेष का अभाव होना स्थापना सामायिक है ।
१ क "क्तिमपि षट्प्रका रामाह ।
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