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________________ ३८२] मूलाचारे पंचेन्द्रियजीवो यदि गच्छेत् । तथा सम्पातो भाजनस्य परिवेपकहस्ताद्भाजनं यदि पतेत् ॥४६७॥ तथा उच्चार आत्मनो यादरमलव्युत्सर्गः स्यात् । तथात्मनः प्रस्रवणं मूत्रादिकं यदि स्यात् । तथा पर्यटतोऽभोजनगृहप्रवेशो यदि भवेत् चांडालादिगृहप्रवेशो यदि स्यात् । तथा पतनमात्मनो मूर्छादिना यदि पतनं भवेत् । तथोपवेशनं यद्युपविष्टो भवेत् । तथा सदंशः सह दंशेन वर्तते इति सदंशः श्वादिभिर्यदि दष्टः स्यात् । तथा भूमिसंस्पर्शः सिद्धभक्तिं कृतायां हस्तेन भुमि यदि स्पृशेत् । तथा निष्ठीवनं स्वेन यदि श्लेष्मादिकं क्षिपेत् ॥४६८।। तथा उदराद्यदि कृमिनिर्गमनं भवेत् । तथा अदत्तग्रहणमदत्तं यदि किचिद् गल्लीयात् । तथा प्रहार आत्मनोऽन्यस्य वा खड्गादिभिर्यदि प्रहार: स्यात्। तथा ग्रामदाहो यदि स्यात् । तथा पादेन यदि किचिद् गह्यते । तथा करेण वा यदि किंचिद्गृह्यते भूमेरिति सर्ववाशनस्यान्तरायो भवतीति सम्बन्धः ॥४६६॥ तथा एते पूर्वोक्ता: काकादयोऽन्तराया: कारणभूता भोजनपरित्यागस्य द्वात्रिंशत् । तथान्ये च बहवश्चा' डालादिस्पर्शकरेष्टमरणसार्मिकसंन्यासपतनप्रधानमरणादयोऽशनपरित्यागहेतवः । भयलोकजुगुप्सायां संयमनिवेदनार्थ च यदि किंचित्स्यात् भयं राज्ञः स्यात्, तथा लोकजुगुप्सा च यदि स्यात् तथाप्याहारत्यागः। संयमार्थ चाहारत्यागो निवेदनार्थं चेति ॥५००॥ पाणौ जन्तुवध–यदि आहार करते हुए के पाणिपुट में कोई जन्तु स्वयं आकर मर जावे, १५. मांसादिदर्शन-यदि मरे हुए पंचेन्द्रिय जीव के शरीर का मांस आदि दिख जावे, १६. उपसर्गयदि देवकृत आदि उपसर्ग हो जावे, १७. पादांतरे जीव-यदि पंचेन्द्रिय जीव पैरों के अन्तराल से निकल जावे, १८. भाजन संपात-यदि आहार देने वाले के हाथ से वर्तन गिर जावे, १६. उच्चार-यदि अपने उदर से मल च्युत हो जावे, २०. प्रस्रवण-यदि अपने मूत्रादि हो जावे, . २१. अभोज्य गृहप्रवेश-यदि आहार हेतु पर्यटन करते हुए मुनि का चांडाल आदि अभोज्य के घर में प्रवेश हो जावे, २२. पतन-यदि मूर्छा आदि से अपना पतन हो जावे अर्थात् आप गिर पड़े, २३. उपवेशन-यदि बैठना पाव, २४. सदंश---यदि कुत्ता आदि काट खाये, २५. भूमि स्पर्श-सिद्धभक्ति कर लेने के बाद याद पथ से भूमि का स्पर्श हो जावे, २६. निष्ठीवनयदि अपने मुख से थूक, कफ आदि निकल जावे, २७. उदरकृमि निर्गमन-यदि उदर से कृमि निकल पड़े, २८. अदत्तग्रहण-यदि बिना दी हुई कुछ वस्तु ग्रहण कर लेवे, २६. प्रहार-यदि अपने ऊपर या अन्य किसी पर तलवार आदि से प्रहार हो जावे, ३०. ग्रामदाह-यदि ग्राम में अग्नि लग जावे, ३१. पादेन किंचित् ग्रहण--यदि पैर से कुछ ग्रहण कर लिया जावे, ३२. करेणकिंचिद्ग्रहण-अथवा यदि हाथ से कुछ वस्तु भूमि पर ग्रहण करली जावे । इस प्रकार उपर्युक्त कारणों से सर्वत्र भोजन में अन्तराय होता है ऐसा समझना चाहिए। ये पूर्वोक्त काक आदि बत्तीस अन्तराय हैं जो कि भोजन के त्याग के लिए कारणभूत होते हैं। इनसे अन्य भी बहुत ये अन्तराय हैं जैसे कि चांडाल आदि का स्पर्श, कलह, इष्टमरण, साधर्मिक संन्यास पतन, प्रधान का मरण आदि, ये भी भोजनत्याग के हेतु हैं। यदि राजा का भय या अन्य किंचित् भय हो जावे, यदि लोकनिन्दा हो जावे तो भी आहार त्याग कर देना चाहिए। संयम के लिए और निर्वेदभाव के लिए भी आहार का त्याग होता है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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