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________________ पिण्डशुद्धि-अधिकारः] [३६५ लेवणमज्जणकम्मं पियमाणं दारयं च णिक्खिविय । एवंविहादिया पुण दाणं जदि दिति दायगा दोसा ॥४७१॥ फयणं-संधुक्षणं मुखवातेनान्येन वा अग्निना काष्ठादीनां प्रज्वालनं प्रद्योतनं वा सारणं काष्ठादीनामुत्कर्षणं, प्रच्छादनं भस्मादिना विध्यापनं जलादिना कृत्वा तथान्यदपि अग्निकार्य, निर्वातं निर्वाणं काष्ठा'दपरित्यागः, घट्टनं चापि कुड्यादिनावरणं ॥४७०॥ तथा लेपनं गोमयकर्दमादिना कूडयादेर्जिनं स्नानादिकं कर्म कृत्वेति सम्बंधः । पिवन्तं दारकं च स्तनमाददानं बाल निक्षिप्य त्यक्त्वा, अन्यांश्चैवंविधादिकान् कृत्वा पुननं यदि दत्ते दायकदोषा भवन्तीति ॥४७॥ उन्मिश्रदोषमाह पुढवी आऊ य तहा हरिदा बीया तसा य सज्जीवा। 'पंचेहि तेहि मिस्सं आहार होदि उम्मिस्सं ॥४७२॥ पृथिवी मृत्तिका, आपश्चाप्रासुकः, तथा हरितकाया पत्रपुष्पफलादयः । वीयाणि-वीजानि यवगोधूमादयः । त्रसाश्च सजीवा निर्जीवाः पुनर्मलमध्ये भविष्यन्ति दोषा इति । तै: पंचभिमिश्र आहारो गाथार्थ-लीपना, धोना करके तथा दूध पीते हुए बालक को छोड़कर इत्यादि कार्य करके आकर यदि दान देते हैं तो दायक दोष होता है ॥४७०-७१।। आचारवृत्ति-फूत्करण-मुख की हवा से या अन्य किसी से अग्नि को फूंकना, प्रज्वालन--काठ आदि को जलाना अथवा प्रद्योतित करना, सारण-काठ आदि का उत्कर्षण करना अर्थात् अग्नि में लकड़ियों को डालना, प्रच्छादन-भस्म आदि से ढक देना, विध्यापनजल आदि से अग्नि को बुझा देना, निर्वात-अग्नि से लकड़ी आदि को हटा देना, घट्टन-किसी चीज से अग्नि को दबा देना आदि अग्नि सम्बन्धी कार्य करते हुए आकर जो आहार देवे तो दायक दोष है। लेपन-गोबर मिट्टी आदि से लीपना, मार्जन-स्नान आदि कार्य करना तथा स्तनपान करते हए बालक को छोड़कर आना, इसी प्रकार से और भी कार्य करके आकर जो पूनः दान देता है और मुनि ग्रहण कर लेते हैं तो उनके दायक दोष होता है। उन्मिश्र दोष को कहते हैं गाथार्थ-पृथ्वी, जल, हरितकाय, बीज और सजीव त्रस इन पाँचों से मिश्र हुआ आहार उन्मिश्र होता है ॥४७२॥ ___आचारवत्ति-मिट्टी, अप्रासुक जल तथा पत्त फूल आदि हरितकाय, जौ, गेहूं आदि बीज और सजीव त्रस, इन पाँच से मिश्रित हुआ आहार उन्मिश्र दोष रूप होता है । इसका सर्वथा त्याग कर देना चाहिए । चूंकि यह महादोष है, इस दोष में सजीव त्रसों को लिया गया १क पंचहि य ते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001838
Book TitleMulachar Purvardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages580
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size12 MB
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