________________
पंचाचाराधिकारः ]
[ १६७
सम्मत्तं - - सम्यक्त्वं । ननु सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि समुदितानि मार्गस्ततः कथं सम्यक्त्वमेव मार्गः । नैष दोषः अवयवे समुदायोपचारात् मार्गं प्रति सम्यक्त्वस्य प्राधान्याद्वा । मग्गफलं - मार्गस्य फलं मार्गफलं । होइ - भवति । निव्वाणं – निर्वाणं अनन्तचतुष्टयावाप्तिः । किमुक्तं भवति, जिनशासने मार्गमार्गफलाभ्यामेव द्वैविध्यमाख्यातं कार्यकारणभ्यां विनान्यस्वाभावात् । अतो मार्गः सम्यक्त्वं कारणं, मार्गफलं च निर्वाणं कार्यरूपं । अथवा मार्ग मार्ग फलाभ्यामिति कृत्वा जिनशासनं द्विविधमेव समाख्यातं । स मार्गः सम्यक्त्वं, शेषश्च फलं निर्वाणमिति ॥ २०२ ॥
यद्यपि मार्गः सम्यक्त्वं इति व्याख्यातं तथापि सम्यक्त्वस्याद्यापि स्वरूपं न बुध्यते तद्बोधनार्थमाहअन्य तीसरा प्रकार नहीं है । अथवा 'जिन शासन' पद को प्रथमान्त मानकर ऐसा अर्थ करना कि यह जिनशासन दो प्रकार का ही है । और वह मार्ग सम्यक्त्व ही है ।
शंका- सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र इन तीनों का समुदाय हो मार्ग है । पुनः आपने सम्यक्त्व को ही मार्ग कैसे कहा ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है । अवयव में समुदाय का उपचार कर लेने से यहाँ पर सम्यक्त्व को ही मार्ग कह दिया गया है । अथवा मार्ग के प्रति सम्यग्दर्शन प्रधान है इसलिए भी यहाँ सम्यक्त्व को ही 'मार्ग' शब्द से कह दिया है ।
मार्ग का फल निर्वाण है जो कि अनन्तचतुष्टय की प्राप्ति रूप है । अभिप्राय यह है कि जिनशासन में मार्ग और मार्गफल ये दो प्रकार कहे गये हैं, क्योंकि कार्य और कारण से अतिरिक्त अन्य कुछ तृतीय बात सम्भव नहीं है । अतः मार्ग तो सम्यक्त्व है वह कारण है और मार्ग काफल निर्वाण है जो कि कार्यरूप है । अथवा मार्ग और मार्गफल के द्वारा जिनशासन दो प्रकार का है । उसमें मार्ग तो सम्यक्त्व है और उसका फल निर्वाण है ।
विशेष – नियमसार में श्री कुन्दकुन्ददेव की दूसरी गाथा यही है, किंचित् अन्तर के
साथ-
मग्गो मग्गफलं ति य दुविहं जिणसासणे समक्वादं ।
मग्गो मोक्खउवायो तस्स फलं होइ णिव्वाणं ।
अर्थात् मार्ग और मार्गफल इन दो प्रकार का जिनशासन में कथन किया गया है । मार्ग तो मोक्ष का उपाय है ओर उसका फल निर्वाण है । अभिप्राय यह है कि यहाँ पर आचार्य ने मोक्ष के उपाय रूप रत्नत्रय को मार्ग कहा है जिसके विषय में उपर्युक्त टीका में प्रश्न उठाकर समाधान किया गया है कि अवयव -- एक सम्यग्दर्शन में भी रत्नत्रयरूप समुदाय का उपचार कर लिया गया है अथवा मोक्ष के मार्ग में सम्यग्दर्शन ही प्रमुख है उसके विना ज्ञान अज्ञान है और चारित्र भी अचारित्र है ।
मार्ग सम्यक्त्व है, यद्यपि आपने ऐसा बताया है फिर भो सम्यक्त्व का स्वरूप मुझे अभी तक मालूम नहीं है, ऐसा कहने पर आचार्य सम्यक्त्व का स्वरूप बतलाने के लिए कहते हैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org