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________________ चन्द्रप्रमचरितम् प्रस्तुत ग्रन्थका प्रकाशन श्रीजीवराजग्रन्थमाला, सोलापुरको ओरसे हुआ है, अतः उसके संस्थापक विद्यानुरागी स्व० ब्र० जीवराजजी के प्रति आभार व्यक्त करना मेरा मुख्य कर्तव्य है। दोनों ग्रन्थमालाके मुख्य सम्पादकोंका भी आभारी हूँ। क्षमा प्रार्थनाः-सावधानी बरतनेपर भी मूल ग्रन्थ के दो स्थलोंमें दो अशुद्धियाँ हो गयी है१. नाभिसरोवरम् ( रः) (१३,७) और २. काञ्चनमेदिनीषु जनयति धिषणाम् (१४,२८)। इनके स्थानमें शुद्ध पाठ ऐसे होने चाहिए थे-१. नाभिसरो वरम् ( १३,७ ) । यहाँ नाभिसरो विशेष्य है और वरम उसका विशेषण। २. काञ्चनमेदिनीष सततं जनयति धिषणाम । इनके अतिरिक्त कुछ प्रफ या प्रेस सम्बन्धी अशुद्धियाँ भी रह गयी हैं, पर उनकी संख्या बहुत कम है। ये अशुद्धियां ऐसी नहीं जो भ्रामक हों। प्रस्तुत ग्रन्थका सम्पादन सन् १९५९ में प्रारम्भ किया था, पर मेरी दीर्घसूत्रताके कारण इसके प्रकाशनमें इतना अधिक विलम्ब हो गया है। यदि उपाध्ये जी बार-बार शीघ्रताके लिए पत्र न लिखते तो और भी विलम्ब हो सकता था। अतएव अन्त में ज्ञात-अज्ञात अशुद्धियों और विलम्बके लिए मैं पाठकों एवं उपाध्येजीसे क्षमा प्रार्थी हूँ। -अमृतलाल शास्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001837
Book TitleChandraprabhacharitam
Original Sutra AuthorVirnandi
AuthorAmrutlal Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1971
Total Pages616
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size14 MB
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