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आप्तमीमांसा-तत्त्वदीपिका लिए व्यापर भी संभव नहीं है । ३९वीं और ४०वीं कारिकामें बतलाया है कि यदि कार्य सर्वथा सत् है, तो पुरुषकी तरह उसकी उत्पत्ति नहीं हो सकती है। इसके अतिरिक्त नित्यत्वैकान्तवादियोंके यहाँ पूण्य-पापकी क्रिया, प्रेत्यभाव (जन्मान्तर) कर्मफल, बन्ध और मोक्ष नहीं बन सकते हैं । ४१वीं कारिकामें कहा गया है कि क्षणिकैकान्त पक्षमें भी प्रेत्यभाव आदिका असंभव है। और प्रत्यभिज्ञान आदिके अभावमें ज्ञानरूप कार्यका आरम्भ भी नहीं हो सकता है । ४२वीं कारिकामें कहा गया है कि यदि कार्य सर्वथा असत् है, तो आकाशपुष्यके समान वह उत्पन्न नहीं हो सकता है, उपादान कारणका कोई नियम नहीं बन सकता है और कार्यकी उत्पत्तिमें कोई विश्वास भी नही किया जा सकता है। ४३वीं कारिकामें यह बतलाया है कि क्षणिकैकान्तमें पूर्वोत्तरक्षणोंमें अन्वय न होनेके कारण हेतुभाव और फलभाव नहीं बन सकते हैं । सन्तानियोंसे पृथक् एक सन्तानकी सिद्धि भी नहीं हो सकती है। ४४वीं कारिका द्वारा यह कहा गया है कि यदि संतान संवृति है तो वह मिथ्या होगी। और यदि वह मुख्य अर्थ है तो संवृति नहीं हो सकती है। क्योंकि मुख्य अर्थके विना संवति नहीं होती है। ४५वीं और ४६वीं कारिकामें कहा गया है कि यदि सब धर्मों में चतुष्कोटि विकल्पका कथन शक्य न होनेसे सन्तान और संतानीमें एकत्व और नानात्वको अवाच्य माना जाय तो ऐसा मानना ठीक नहीं है । क्योंकि जो सब धर्मोंसे रहित है, वह अवस्तु है तथा उसमें विशेषण-विशेष्यभाव भी नहीं बन सकता है। ४७वीं कारिकामें कहा गया है कि जो संज्ञी सत् होता है उसीका पर द्रव्य आदिकी अपेक्षासे निषेध किया जाता है। जो सर्वथा असत् है वह विधि-निषेधका विषय नहीं हो सकता है। ४८वीं कारिका द्वारा यह बतलाया गया है कि जो सब धर्मोंसे रहित है वह अवस्तु है और अवस्तु होनेसे अनभिलाप्य भी है। तथा पर द्रव्यादिकी अपेक्षासे वस्तु ही अवस्तु हो जाती है। ४९वीं कारिकामें यह कहा है कि यदि सब धर्म अवक्तव्य हैं, तो उनका कथन कैसे हो सकता है। और उनके कथनको संवृतिरूप माननेपर वह कथन मिथ्या ही होगा, परमार्थ नहीं । ५०वीं कारिका द्वारा पूछा गया है कि तत्त्व अवाच्य क्यों है। अशक्यता या अबोधके कारण तो उसे अवाच्य नहीं कहा जा सकता है। अतः यही कहना चाहिए कि अभाव होनेसे तत्त्व अवाच्य है। ५१वीं कारिकामें कहा गया है कि क्षणिकैकान्त पक्षमें कृतनाश और अकृताभ्यागमका प्रसंग आता है। हिंसाके अभिप्रायसे रहित व्यक्ति हिंसा करता है और हिंसाके अभिप्रायसे युक्त व्यक्ति हिंसा नहीं करता
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