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________________ कारिका-१०६] तत्त्वदीपिका ३३३ ज्ञानमें कथंचित् साम्य भी है और कथंचित् वैषम्य भी। परन्तु दोनों सर्वतत्त्वप्रकाशक हैं, यह सुनिश्चित है। पहले बतलाया गया है कि तत्त्वज्ञान स्याद्वादनयसे युक्त होता है। वहाँ स्याद्वादनयका अर्थ प्रमाण और नय भी है। स्याद्वादका नाम प्रमाण है, और यह स्याद्वाद सप्तभंगीवचनरूप होता है । तथा नैगम आदिका नाम नय है। अथवा अहेतुवादरूप आगमका नाम स्याद्वाद है, और हेतुवादका नाम नय है। और इन दोनोंसे अलंकृत तत्त्वज्ञान प्रमाण होता है। - अब उसी नय ( हेतु ) के स्वरूपको बतलानेके लिए आचार्य कहते हैं धयोत अविरोधत: सधर्मणैव साध्यस्य साध्यादेविरोधतः । स्याद्वादप्रविभक्तार्थविशेषव्यञ्जको नयः ॥१०६।। साध्यका साधर्म्य दृष्टान्तके साथ साधर्म्य द्वारा और वैधर्म्य दृष्टान्त के साथ वैधर्म्य द्वारा विना किसी विरोधके जो स्याद्वादके विषयभूत अर्थके विशेष ( नित्यत्व आदि ) का व्यंजक होता है, वह नय कहलाता है। ___इस कारिकामें नय और हेतु दोनोंका लक्षण एक साथ बतलाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि कारिकाके प्रथमार्धके द्वारा हेतुका और द्वितीयार्धके द्वारा नयका लक्षण बतलाया गया है। हेतु साध्यका साधक होता है । साध्य शक्य, अभिप्रेत और अप्रसिद्ध होता है । स्याद्वाद ( परमागम ) का विषयभूत अर्थ भी शक्य, अभिप्रेत और अप्रसिद्ध रूपसे विवादका विषय है। अतः हेतु ऐसे साध्यरूप अर्थका साधर्म्य दृष्टान्तके साधर्म्यसे और वैधर्म्य दृष्टान्तके वैधर्म्यसे व्यंजक ( प्रकाशक ) होता है। ___ 'सधर्मणैव साध्यस्य साधर्म्यात्' इस वाक्यके द्वारा त्रैरूप्यको हेतुका लक्षण बतलाया गया है, और 'अविरोधतः' इस पदके द्वारा अन्यथानुपपत्तिको हेतुका लक्षण कहा है । वास्तवमें अन्यथानुपपत्ति ( अविनाभाव ) ही हेतुका यथार्थ लक्षण है। पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व और विपक्षव्यावृत्ति ये हेतुके तीन रूप हैं । बौद्ध त्ररूप्यको हेतुका लक्षण मानते हैं। १. शक्यमभिप्रेतमप्रसिद्ध साध्यम् । -न्यायविनिश्चय, श्लोक १७२ २. हेतोस्त्रिष्वपि रूपेषु निर्णयस्तेन वर्णितः । असिद्धविपरीतार्थव्यभिचारिविपक्षतः ।। -प्रमाणवा० ३।१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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