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आप्तमीमांसा [परिच्छेद-१० पाँच ज्ञान परोक्ष प्रमाणके अन्तर्गत हैं।
कुछ लोग अधिगत अर्थको जाननेके कारण स्मृतिको प्रमाण नहीं मानते हैं। उनका ऐसा मानना ठीक नहीं है। स्मृतिके विषयमें दो विकल्प होते हैं। पूर्वमें प्रत्यक्षसे गृहीत अर्थमें जो स्मृति होती है वह प्रमिति विशेषको उत्पन्न करती है या नहीं। यदि स्मृति प्रमिति विशेषको उत्पन्न नहीं करती है, तो अधिगत अर्थको जाननेके कारण उसको प्रमाण न मानने में कोई आपत्ति नहीं है। जैसे कि प्रत्यक्षसे वह्निका निश्चय होजाने पर भी ज्वाला आदिसे वह्निकी जो लैङ्गिक स्मृति होती है, वह प्रमिति विशेषके न होनेसे प्रमाण नहीं है। किन्तु जहाँ प्रमिति विशेषकी उत्पत्ति होती है वहाँ स्मृतिको प्रमाण मानना आवश्यक है। यदि सब स्मृतियाँ अप्रमाण हैं, तो अनुमानकी उत्पत्ति भी नहीं हो सकती है । क्योंकि अविनाभाव सम्बन्ध की स्मृतिके विना अनुमानकी उत्पत्ति असंभव है। तथा अविनाभाव सम्बन्धकी स्मृतिके अप्रमाण होनेसे अनुमान भी अप्रमाण होगा। स्मृतिका प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम आदि किसी प्रमाणमें अन्तर्भाव नहीं हो सकता है, क्योंकि स्मतिका विषय सब प्रमाणोंसे भिन्न है। स्मृति केवल भूत अर्थको जानती है । अधिगत अर्थको जाननेके कारण स्मृतिको अप्रमाण नहीं माना जा सकता है। अन्यथा अनुमानके अनन्तर होनेवाला वह्निका प्रत्यक्ष भी अप्रमाण हो जायगा । यद्यपि स्मृति अधिगत अर्थको जानती है, फिर भी उसके जाननेमें प्रमिति विशेषका सद्भाव पाया जाता है। पूर्वमें अधिगत अर्थ भी समारोपके कारण अनधिगतके समान हो जाता है । अतः अधिगत अर्थमें उत्पन्न समारोप (संशयादि)का व्यवच्छेद करनेके कारण स्मृति प्रमाण है । __स्मृतिकी तरह प्रत्यभिज्ञान भी एक पृथक् प्रमाण है। प्रत्यभिज्ञानके द्वारा भी अपने विषयमें व्यवसायरूप अतिशय उत्पन्न होता है। प्रमाणका अस्तित्व व्यवसायके ऊपर ही निर्भर है। व्यवसाय (निश्चय) के अभावमें कोई भी ज्ञान प्रमाण नहीं हो सकता है। अपने विषयका व्यवसाय न होनेके कारण ही संशयादि ज्ञानोंमें प्रमाणता नहीं है । प्रत्यभिज्ञान अव्यवसायात्मक नहीं है, क्योंकि उसके द्वारा 'तदेवेदं'-'यह वही है', 'तत्सदृशमेव'-'यह उसके सदृश ही है', इस प्रकारका व्यवसायात्मक ज्ञान होता है। प्रत्यभिज्ञानका अन्य किसी प्रमाणमें अन्तर्भाव भी नहीं हो सकता है। क्योंकि कोई भी प्रमाण प्रत्यभिज्ञानके विषयको ग्रहण करने में समर्थ नहीं है । अतीत और वर्तमान अवस्थाव्यापी एकत्व आदि प्रत्यभिज्ञानका विषय है । इस विषयमें किसी प्रमाणकी प्रवृत्ति न होनेके कारण
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