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कारिका-१००] तत्त्वदीपिका
३११ है, यह बात प्रत्यक्ष सिद्ध है। मदिरा, धतूरा आदि अचेतन हैं, फिर भी चेतन आत्मापर इनका प्रभाव देखा जाता है। मदिरापानसे आदमी उन्मत्त हो जाता है। और धतूराके भक्षणसे सब पदार्थ पीले दिखने लगते हैं। इससे सिद्ध होता है कि अचेतनका चेतनपर प्रभाव पड़ता है । इसी प्रकार चेतनका प्रभाव अचेतनपर भी पड़ता है। यदि पापड़ बनाते समय रजस्वला स्त्रीकी दृष्टि उनपर पड़ जाय तो सेकनेपर पापड़का रंग लाल हो जाता है। कर्म सर्वथा अचेतन भी नहीं है। चेतन आत्मासे सम्बन्धित होनेके कारण उनमें कथंचित् चेतनता भी है। यथार्थमें कर्म दो प्रकारके हैं-भावकर्म और द्रव्यकर्म । उनमेंसे भावकर्म ( रागादि ) चेतन हैं, और द्रव्यकर्म ( ज्ञानावरणादि ) अचेतन हैं। अतः कर्मबन्धके अनुसार ही राग, शरीर आदि कार्योंकी उत्पत्ति होती है। ईश्वर शरीरादिका कर्ता नहीं है, किन्तु अपने-अपने शरीर आदिका कर्ता प्रत्येक जीव है । और शुद्धि तथा अशुद्धिके भेदसे जीव दो प्रकारके होते हैं। ___ शुद्धि और अशुद्धिका स्वरूप बतलानेके लिए लिए आचार्य कहते हैं
शुद्धयशुद्धी पुनः शक्ती ते पाक्यापाक्यशक्तिवत् । साधनादी तयोर्व्यक्ती स्वभावोऽतर्कगोचरः ॥१०॥ पाक्य और अपाक्य शक्तिकी तरह शुद्धि और अशुद्धि ये दो शक्तियाँ हैं। शुद्धिकी व्यक्ति सादि और अशुद्धिकी व्यक्ति अनादि है। क्योंकि स्वभाव तर्कका विषय नहीं होता है।
शुद्धि और अशुद्धि ये दो शक्तियाँ हैं। भव्यत्व शुद्धिका पर्यायवाची शब्द है, और अभव्यत्व अशुद्धिका पर्यायवाची शब्द है। मूंग या उड़द आदिमें पकनेकी शक्ति होती है, उस शक्तिको पाक्य शक्ति कहते हैं । कोई मूंग या उड़द ऐसा भी होता है कि उसको कितना भी पकाया जाय किन्तु वह कभी पकता ही नहीं है । इस शक्तिका नाम है, अपाक्य शक्ति । इसी प्रकार जीवोंमें भी दो प्रकारकी शक्तियाँ होती हैं-एक भव्यत्व शक्ति और दूसरी अभव्यत्व शक्ति । जिस जीवमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रको उत्पन्न करनेकी शक्ति है, वह भव्य है। और जिसमें सम्यग्दर्शनादिको उत्पन्न करनेकी शक्ति नहीं है, वह अभव्य है। भव्यत्वकी व्यक्ति ( प्रकट होना । सादि है, क्योंकि उसकी
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