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प्रस्तावना
ग्रन्थ-नाम
आचार्य समन्तभद्रने अपनी इस कृतिका नाम . 'आप्तमीमांसा' बतलाया है । इसीको अष्टशती-भाष्यकार अकलंकदेवने 'सर्वज्ञ-विशेषपरीक्षा' कहा है। अष्टसहस्रीके रचयिता आचार्य विद्यानन्दने भी इसका 'आप्तमीमांसा' यह नाम स्वीकार किया है। __इसका दूसरा नाम देवागम भी है। प्राचीन ग्रन्थकारोंने प्रायः इसी नामसे इसका उल्लेख किया है। अकलंकदेवने अष्टशती-भाष्यके प्रारंभमें इसका यही नाम दिया है। आचार्य विद्यानन्दने भी अष्टसहस्रीमें इसका देवागम नाम स्वीकार किया है।
इसीप्रकार वादिराज', हस्तिमल्ल, शुभचन्द्र आदि ग्रन्थकारोंने भी समन्तभद्रकी इस महत्त्वपूर्ण कृतिका इसी नामसे उल्लेख किया है। यथार्थमें जैसे भक्तामर, कल्याणमन्दिर, एकीभाव आदि स्तोत्र आद्य पदोंसे प्रारम्भ होनेके कारण उन नामोंसे प्रसिद्ध हैं, वैसे ही 'देवागम' इस पदसे प्रारम्भ होनेके कारण यह कृति देवागम नामसे प्रसिद्ध है। आचार्य समन्तभद्रकी अन्य कृतियाँ भी दो नामोंसे प्रसिद्ध हैं। जैसे युक्त्यनुशासन ( वीरजिनस्तोत्र ), स्वयम्भूस्तोत्र ( समन्तभद्रस्तोत्र ), १. इतीयमाप्तमीमांसा विहिता हितमिच्छताम् । आप्तमी० का० ११४ २. विहितेयमाप्तमीमांसा सर्वज्ञविशेषपरीक्षा। अष्टश० अष्टस० पृ० २९४ ३. शास्त्रावताररचितस्तुतिगोचराप्तमीमांसितं कृतिरलंक्रियते मयास्य।
अष्टस० पृ० १ श्रीमत्समन्तभद्रस्वामिभिर्दैवागमाख्याप्तमीमांसायां प्रकाशनात् ।
___ आप्तपरीक्षा पृ० २६२ ४. कृत्वा विवियते स्तवो भगवतां देवागमस्तस्कृतिः । अष्टशती प्रारम्भिक पद्य २ ५. इति देवागमाख्ये स्वोक्तपरिच्छेदे शास्त्र । ___ अष्टस० पृ० २९४ ६. स्वामिनश्चरितं तस्य कस्य नो विस्मयावहम् ।
देवागमेन सर्वज्ञो येनाद्यापि प्रदर्श्यते ॥ पार्श्वचरित ७. देवागमनसूत्रस्य श्रुत्या सद्दर्शनान्वितः ।
विक्रान्तकौरव ८. समन्तभद्रो भद्रार्थो भातु भारतभूषणः । देवागमेन येनात्र व्यक्तो देवागमः कृतः ।।
पाण्डवपुराण
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