________________
प्रस्तावना विषय - अनुक्रमणिका
जैन न्यायकी प्रतिष्ठा अविसंवादकी प्रायिक स्थिति परोक्षप्रमाण वैशिष्ट्य
जय-पराजय व्यवस्था आलोचनकौशल्य
अष्टसहस्त्री के रचयिता आचार्य विद्यानन्द
विद्यानन्दका व्यक्तित्व विद्यानन्दका परिचय
विद्यानन्दका समय
विद्यानन्दकी रचनाएँ
विद्यानन्दकी दार्शनिक उपलब्धियाँ
धर्मज्ञ और सर्वज्ञ मीमांसादर्शन और सर्वज्ञता बौद्धदर्शन और सर्वज्ञता
जैनदर्शन और सर्वज्ञता
आप्तमीमांसाको कारिकाओंका प्रतिपाद्य विषय ५९-६८
सर्वज्ञ विमर्श
आत्मज्ञ और सर्वज्ञ
जैनदर्शन और सर्वज्ञसिद्धि
Jain Education International
प्रमाण विमर्श
प्रमाणका स्वरूप बौद्धदर्शन में प्रमाणका स्वरूप
सांख्यदर्शनमें प्रमाणका लक्षण
न्यायदर्शनमें प्रमाणका स्वरूप
मीमांसादर्शन में प्रमाणका स्वरूप
जैनदर्शन में प्रमाणका स्वरूप
प्रमाणके भेद
प्रत्यक्ष और परोक्षका लक्षण
प्रत्यक्ष भेद
परोक्षके भेद प्रमाण्य - विचार
४५
४७
४८
५०
५२
५५
५३
५५
For Private & Personal Use Only
५५
५६
५७
६९
६९
७०
७१
७३
७४
७५
७७
७७
७८
७९
८०
८०
८१
८३
८४
८४
८५
८५
www.jainelibrary.org