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कारिका-२८] तत्त्वदीपिका
१८३ और विजातीय परमाणुओंसे पृथक पृथक हैं। इन लोगोंका पृथक्त्वैकान्तवाद भी अद्वैतवादकी तरह ठीक नहीं है। यदि सब पदार्थ पृथक्त्व गुणके कारण पृथक पृथक हैं तो प्रश्न यह है कि पृथक पदार्थोंसे पृथक्त्व गुण अपृथक है या पृथक् है । यदि पृथक्त्व गुण पृथक पदार्थोसे अपृथक है, तो पृथक्त्वैकान्तका त्याग कर देनेसे स्वमत विरोध स्पष्ट है । गुण और गुणीमें भेद माननेके कारण भी पृथक्त्व गुण पृथग्भूत पदार्थोसे अपृथक नहीं माना जा सकता है। और यदि पृथक्त्व गुण पृथग्भूत पदार्थोंसे पृथक है, तो पृथक गुणसे पृथक होनेके कारण पृथक भूत पदार्थ परस्परमें अपृथक हो जावेंगे। तथा पृथक्त्व गुण भी पृथक्त्व नामसे नहीं कहा जा सकेगा। क्योंकि ऐसा माना गया है कि यह गुण अनेक पदार्थोंमें रहता है। इसलिए पृथक्त्व गुणके कारण सब पदार्थोंको पृथक पृथक मानना ठीक नहीं है ।
__ यथार्थमें सब पदार्थ पथक-पृथक नहीं हैं। गण, गुणी आदिको एक दुसरेसे सर्वथा पथक मानने पर ज्ञान आत्माका गण है, गन्ध पृथिवाका गुण है, इत्यादि प्रकारसे व्यपदेश नहीं हो सकता है। गुण, गुणी आदि न तो सर्वथा पृथक् हैं, और न सर्वथा अपृथक् हैं । किन्तु कथंचित् पृथक् हैं, और कथंचित् अपृथक् । पृथक् तो इसलिये हैं कि उनका स्वरूप पृथक्-पृथक् है । यह गुण है, यह गुणी है, इत्यादि व्यवहार भी पृथक -पृथक होता है। अपृथक इसलिये हैं कि एक दूसरेको घट और पटकी तरह पृथक नहीं किया जा सकता है । घट और पटको सर्वथा पृथक होनेसे उनमें गुण, गुणी आदि व्यवहार नहीं होता है। यदि गुण, गुणी आदि सर्वथा पृथक हैं, तो समवायके द्वारा भी उनमें एकत्वकी प्रतीति नहीं हो सकती है। इसलिए गुण, गुणी आदिमें समवाय सम्बन्ध न मानकर तादात्म्य मानना ही श्रेयस्कर है । पृथक्त्व गुण भी यदि सर्वथा एक है, तो वह अनेक पदार्थों में नहीं रह सकता है। जैसे कि एक परमाणुका सम्बन्ध दो पदार्थोके साथ नहीं हो सकता है। पृथग्भूत पदार्थोंसे अतिरिक्त कोई पृथक्त्व गुण भी नहीं है। जिस पदार्थकी जैसी प्रतीति हो उस पदार्थको उसी रूपमें मानना ठीक है। जो पदार्थ पृथक-पृथक हैं उनमें पृथक्त्वकी प्रतीति स्वतः होती है। जैस घट और पटकी पृथक प्रतीति पृथक्त्व गुणके विना स्वयं ही होती है। और जो पदार्थ अपृथक हैं, उनको पृथक्त्व गुण भी पृथक नहीं कर सकता है । इसलिए पृथक्त्व गुणके द्वारा सब पदार्थोंको पृथक-पृथक मानकर पृथक्त्वैकान्तकी कल्पना करना उचित नहीं है।
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