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आप्तमीमांसा [ परिच्छेद-१ अर्थात् सात प्रकारके प्रश्नके वशसे वस्तुमें अविरोधपूर्वक विधि और प्रतिषेधकी कल्पना करना सप्तभंगी है। सात भंग इस प्रकार होते हैं-१. वस्तु कथंचित् सत् है, २. कथंचित् असत् है, ३. कथंचित् उभयात्मक है, ४. कथंचित् अवाच्य है, ५. कथंचित् सत् और अवाच्य है, ६. कथंचित् असत् और अवाच्य है, ७. कथंचित् सत्-असत् और अवाच्य है। __ यहाँ यह शंका होना स्वाभाविक है कि वस्तुमें सात ही भंग क्यों होते हैं। इसका उत्तर यह है कि वस्तुमें सात प्रकारके प्रश्न होते हैं । इसीलिये 'प्रश्नवशात्' ऐसा कहा है। सात प्रकारके प्रश्न होनेका कारण यह है कि वस्तूमें सात प्रकारकी जिज्ञासा होती है। सात प्रकारकी जिज्ञासा होनेका कारण सात प्रकारका संशय है। और सात प्रकारका संशय इसलिये होता है कि संशयका विषयभूत धर्म सात प्रकारका है। प्रत्येक वस्तुमें नयकी अपेक्षासे सात भंग होते हैं। सातसे कम या अधिक भंग नहीं हो सकते । क्योंकि नयवाक्य सात ही होते हैं।
सातभंग निम्न प्रकारसे भी होते हैं
१. विधिकल्पना, २. प्रतिषेधकल्पना, ३. क्रमसे विधिप्रतिषेधकल्पना, ४. एक साथ विधिप्रतिषेधकल्पना, ५. विधिकल्पनाके साथ विधिप्रतिषेधकल्पना, ६. प्रतिषेध कल्पनाके साथ विधिप्रतिषेधकल्पना, ७. क्रमसे तथा एक साथ विधिप्रतिषेधकल्पना ।
ब्रह्माद्वैतवादियोंका कहना है कि विधिकल्पना ही सत्य है और प्रतिषेधकल्पना मिथ्या है। इसलिए विधिवाक्य ही सम्यक् वाक्य है। अन्य निषेध आदि वाक्य कथनमात्र हैं । वेदान्तवादियोंका उक्त कथन नितान्त अयुक्त है । क्योंकि इस बातको पहले बतलाया जा चुका है कि भाकान्त माननेमें अनेक दोष आते हैं। यदि पदार्थ भावरूप ही है, अभावरूप नहीं, तो सब पदार्थ सब रूप हो जायगे । 'अनादि, अनन्त' और स्वरूप रहित भी हो जॉयगे। अतः पदार्थं विधिरूप ही नहीं है, किन्तु प्रतिषेधरूप भी है। इसी प्रकार यह कहना भी ठीक नहीं है कि प्रतिषेधवाक्य ही सत्य है, और विधिवाक्य मिथ्या है। क्योंकि अभावैकान्त पक्षमें जो दूषण आते हैं, उनको पहले बतलाया जा चुका है। पदार्थका स्वरूप एकान्तरूप नहीं है, किन्तु अनेकान्तरूप है । पदार्थ न केवल भावरूप ही है, और न केवल अभावरूप, किन्तु उभयात्मक है। वैशेषिक मानते हैं कि सत् तथा असत्के भेदसे दो प्रकारका ही तत्त्व है। पदार्थोंका वर्गीकरण १. सदसद्वर्गास्तत्त्वम् ।
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