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आप्तमीमांसा
[परिच्छेद-१ शंका-सर्वज्ञके विषयमें विद्यमान पदार्थों को जाननेवाले प्रत्यक्षादि पाँच प्रमाणोंकी प्रवृत्ति न होनेसे सर्वज्ञकी सत्ताग्राहक प्रमाणका अभाव ही सर्वज्ञका बाधक प्रमाण है।
उत्तर-सर्वज्ञकी सत्ताग्राहक प्रमाणका अभाव केवल मीमांसकके लिए है या सबके लिए है। यदि मीमांसक लिए है तो उसके लिए तो अन्य वस्तुओंकी सत्ताग्राहक प्रमाणका भी अभाव संभव है। दूसरोंके चित्तोंमें क्या-क्या व्यापार हो रहा है, इस बातको भी मीमांसक नहीं जानते हैं। अतः मीमांसको किसी वस्तुका ज्ञान न होनेसे उसका अभाव बतलाना कहाँ तक युक्तिसंगत है। समस्त पुरुषोंके लिए सर्वज्ञकी सत्ताग्राहक प्रमाणका अभाव बतलाना भी उचित नहीं है। क्योंकि समस्त पुरुषोंका ज्ञान करना असंभव है। और यदि मीमांसकने सबका ज्ञान कर लिया है तो वही सर्वज्ञ हो गया, फिर सर्वज्ञका निराकरण करनेसे क्या लाभ है।
मीमांसक अभाव प्रमाणसे सर्वज्ञका अभाव सिद्ध करते हैं। यदि सर्वज्ञ होता तो उसको उपलब्ध होना चाहिए। यतः सर्वज्ञ उपलब्ध नहीं होता है अतः सर्वज्ञका अभाव अनुपलब्धि प्रमाणसे सिद्ध है।
किन्तु मीमांसका उक्त कथन भी असंगत ही है। अभाव प्रमाणकी प्रवत्ति कहाँ होती है इस विषयमें स्वयं मीमांसकोंने कहा है
गृहीत्वा वस्तुसद्भावं स्मृत्वा प्रतियोगिनम् ।
मानसं नास्तिताज्ञानं जायतेऽक्षानपेक्षया ॥ जिस स्थानमें किसी वस्तुका अभाव करना हो पहिले उस स्थानका ज्ञान आवश्यक है । जिस वस्तुका अभाव किया जाता है उसको प्रतियोगी कहते हैं। अभाव सिद्ध करते समय प्रतियोगीका स्मरण होना भी आवश्यक है । तब इन्द्रियोंकी अपेक्षाके विना मानसिक अभाव-ज्ञान होता है । इस कक्षमें घट नहीं है, इस प्रकारका अभाव-ज्ञान तभी संभव है जब पूरे कक्षका ज्ञान हो और घटका स्मरण हो। पर क्या सर्वज्ञाभावके विषयमें ऐसा संभव है। अर्थात् नहीं है। सर्वज्ञका अभाव तीनों कालों और तीनों लोक में करना है। किन्तु असर्वज्ञको तीनों कालों और तीनों लोकोंका ग्रहण किसी भी प्रकार संभव नहीं है । यदि कोई तीनों कालों और तीनों लोकोंका ग्रहण करता है तो वही सर्वज्ञ है। सर्वज्ञके अभावमें मीमांसकको सर्वज्ञका स्मरण भी संभव नहीं है। तब मीमांसक अनुपलब्धि प्रमाणसे सर्वज्ञका अभाव कैसे कर सकता है।
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