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आप्तमीमांसा
[ परिच्छेद- १
शक्तिकी उत्पत्ति होती है । एक जन्मसे दूसरे जन्ममें जानेवाला कोई face आत्मा नहीं है ।
चार्वाक केवल प्रत्यक्षको ही प्रमाण मानते हैं । जिस वस्तुका ज्ञान चक्षु आदि इन्द्रियोंसे होता है वही ज्ञान सत्य है । चार्वाकोंके अनुसार अनुमान प्रमाण नहीं है। अनुमानकी प्रमाणता व्याप्तिज्ञानके ऊपर निर्भर है। 'जहाँ-जहाँ धूम है वहाँ वहाँ अग्नि है' इस प्रकारके ज्ञानको व्याप्तिज्ञान कहते हैं । किन्तु यह संभव नहीं है कि संसारके समस्त धूम और समस्त अग्निका ज्ञान प्रत्यक्ष से हो जाय । अतः सर्वदेशावछिन्न और सर्वकालावच्छिन्न व्याप्तिज्ञान न हो सकने के कारण अनुमानमें प्रमाणता संभव नहीं है !
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चार्वाकदर्शनके अनुसार धर्म भी कोई तत्त्व नहीं है । जब परलोकमें जानेवाला कोई आत्मा ही नहीं है तो धर्म किसके साथ जायगा । धर्म क्या है इस बात को समझना भी कठिन है । जीवनका चरम लक्ष्य है ऐहिक सुखों की प्राप्ति । अर्थ के द्वारा कामकी प्राप्ति करनेमें ही जीवनकी सफलता है । नानाप्रकारके कायक्केश आदिके द्वारा धर्मके चक्कर में पड़े रहना जीवनको नष्ट करना है । जब कोई आत्मा नहीं है तो सर्वज्ञ या ईश्वरकी संभावना इस मत में हो हो नहीं सकती । इसप्रकार चार्वाकदर्शन भौतिकवादी दर्शन है । संक्षेपमें चार्वाकदर्शनके ये ही मुख्य सिद्धान्त हैं ।
सुचारुरूपसे समीक्षा करनेपर चार्वाकदर्शनके उक्त सिद्धान्त भी युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होते हैं । चार्वाकका यह कहना कि कोई सर्वज्ञ नहीं है तथा प्रत्यक्ष के अतिरिक्त कोई प्रमाण नहीं है, प्रत्यक्षसे सिद्ध नहीं होता है । क्योंकि सर्वज्ञ तथा अनुमान आदि प्रमाण प्रत्यक्षके विषय नहीं है । ऐसा होनेपर भी यदि प्रत्यक्षसे सर्वज्ञ तथा अनुमान आदि प्रमाणों के अभावका ज्ञान होता है तो बृहस्पति आदिके प्रत्यक्ष तथा उसके विषयके अभावका ज्ञान भी हमारे प्रत्यक्षसे होना चाहिये । क्योंकि बृहस्पतिका प्रत्यक्ष भी हमारे प्रत्यक्षका विषय नहीं है ।
अनुमान प्रमाणसे भी सर्वज्ञ तथा अन्य प्रमाणोंका अभाव सिद्ध नहीं हो सकता है । क्योंकि चार्वाक अनुमानको प्रमाण ही नहीं मानते हैं । चार्वाक यदि नैयायिक आदिके द्वारा माने गये अनुमानसे सर्वज्ञ तथा अन्य प्रमाणों का अभाव सिद्ध करेंगे तो यह प्रश्न उपस्थित होगा कि नैयायिकद्वारा माना गया अनुमान प्रमाणसिद्ध है या नहीं । यदि प्रमाणसिद्ध है तो चार्वाकको भी अनुमान प्रमाण मानना पड़ेगा । जो वस्तु प्रमाणसे सिद्ध होती है वह सबको मानना पड़ती है । चार्वाक प्रत्यक्षको भी इसी -
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