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आप्तमीमांसा
[परिच्छेद-१ परसामान्य और अपरसामान्य । सत्ता परसामान्य है तथा द्रव्यत्व, गुणत्व, कर्मत्व, गोत्व आदि अपरसामान्य हैं। जितनी गायें हैं उन सबमें गोत्व सामान्य रहता है। गायके उत्पन्न होनेपर सामान्य उत्पन्न नहीं होता तथा गायके मर जानेपर सामान्यका नाश नहीं होता। सामान्य द्रव्य, गुण और कर्म इन तीन पदार्थों में रहता है।
विशेष-समान पदार्थों में भेदकी प्रतीति कराना विशेष पदार्थका काम है । पृथिवीके सब परमाणु समान हैं । फिर भी एक परमाणुसे दूसरा परमाणु भिन्न है, क्योंकि प्रत्येक परमाणुमें पृथक्-पृथक् विशेष पदार्थ रहता है। इससे प्रत्येक परमाणुकी पृथक्-पृथक् प्रतीति होती है। इसी प्रकार सब आत्मायें समान हैं। लेकिन प्रत्येक आत्मामें विशेष पदार्थ रहता है। इसलिए एक आत्मासे दूसरे आत्माकी पृथक् प्रतीति होती है। यही बात मनके विषयमें भी है। इसीलिए विशेष अनन्त माने गए हैं। इनके विषयमें एक विशेष बात यह है कि ये स्वतः व्यावर्तक होते हैं, अर्थात् एक विशेषसे दूसरे विशेषमें भेद स्वतः ही होता है। इसके लिए किसी दूसरे पदार्थकी अपेक्षा नहीं पड़ती। जिस प्रकार एक परमाणुसे दूसरे परमाणुमें भेद करनेके लिए विशेष पदार्थ माना गया है, उसी प्रकार एक विशेषसे दूसरे विशेषमें भेद करनेके लिए किसी अन्य पदार्थकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि एक विशेष स्वयं ही दूसरे विशेषसे भेद कर लेता है । विशेष नित्य द्रव्योंमें रहता है।
समवाय-अयुतसिद्ध पदार्थों में जो सम्बन्ध होता है उसका नाम समवाय है। अविनाश अवस्थामें जिन दो पदार्थोंमेंसे एक पदार्थ दूसरे पदार्थके आश्रित ही रहता है वे दोनों अयुतसिद्ध कहलाते हैं। अवयव और अवयवी, जाति और व्यक्ति, गुण और गुणी, क्रिया और क्रियावान् तथा
१. अन्त्यो नित्यद्रव्यवृत्तिविशेषः परिकीर्तितः ॥ -कारिकावली का० १० । २. तत्रायुतसिद्धयोः सम्बन्धः समवायः । ययोर्मध्ये एकमविनश्दपराश्रितमेवाव
तिष्ठते तावयुतसिद्धौ । तावयुतसिद्धौ द्वौ विज्ञातव्यौ ययोर्द्वयोः । अनश्यदेकमपराश्रितमेवावतिष्ठते ।।
--तर्कभाषा पृ० ६ । घटादीनां कपालादौ द्रव्येषु गुणकर्मणोः ।। तेषु जातेश्च सम्बन्धः समवायः प्रकीर्तितः ॥ --कारिकावली का० १२ । अवयवायविनोर्जातिव्यक्त्योर्गुणगुणिनोः क्रियाक्रियावतोनित्यद्रव्यविशेषयोः यः सम्बन्धः स समवायः ।
--मुक्तावली पृ० २३।
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