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________________ आप्तमीमांसा [परिच्छेद-१ गुण-जो द्रव्यके आश्रित हो, गुण रहित हो तथा संयोग-विभागका निरपेक्ष कारण न हो वह गुण है । गुण २४ होते हैं-रूप, रस, गन्ध, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह शब्द, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और संस्कार । ___रूप गुण केवल चक्षु इन्द्रियके द्वारा गृहीत होता है। इसके ७ भेद हैं-शुक्ल, नील, पील रक्त, हरित, कपिश और चित्र । रूप पृथिवी, जल और अग्नि इन तीन द्रव्योंमें रहता है। पथिवीमें सातों प्रकारका रूप रहता है। जलमें भास्वर शुक्ल और अग्निमें अभास्वर शुक्ल रहता है। ___ रस गुण केवल रसना इन्द्रियके द्वारा गृहीत होता है। इसके ६ भेद हैं-मधुर, आम्ल, लवण, कटु, कषाय और तिक्त । रस पृथ्वी और जल दो द्रव्योंमें रहता है । पृथिवीमें छहों प्रकारका रस रहता है, जलमें केवल मधुर रस रहता है । गन्ध गुण घ्राण इन्द्रिय द्वारा गृहीत होता है । इसके २ भेद हैं-सुरभि और असुरभि । गन्धगुण केवल पृथिवीमें रहता है । स्पर्शगुण स्पर्शन इन्द्रियके द्वारा गृहीत होता है । इसके तीन भेद हैं-शीत, उष्ण और अनुष्णाशीत । यह पृथिवी, जल, अग्नि और वायु इन चार द्रव्योंमें रहता है । जलमें शीत, अग्निमें उष्ण, और पृथिवी तथा वायुमें अनुष्णाशोत स्पर्श रहता है। संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग और विभाग ये गुण नौ द्रव्योंमें रहते हैं । परत्व और अपरत्व गुण पृथिवी आदि चार तथा मन इन पाँच द्रव्योंमें रहते हैं। गुरुत्व पृथिवी और जलमें रहता है । द्रवत्व पृथिवी, जल और अग्निमें रहता है। द्रवत्वके दो भेद हैंसांसिद्धिक और नैमित्तिक । जलमें सांसिद्धिक द्रवत्व रहता है, पृथिवी और अग्निमें नैमित्तिक द्रक्त्व रहता है। स्नेह गुण केवल जलमें रहता है । शब्द गुण आकाशमें ही रहता है। संस्कारके तीन भेद हैं-वेग, भावना और स्थितिस्थापक । वेग पथिवी आदि चार तथा मनमें रहता है। स्थितिस्थापक चटाई आदि पृथिवीमें रहता है। बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और भावना नामक संस्कार ये नौ आत्मा के विशेष गुण हैं। रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह और वेग ये मूर्त गुण हैं । बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, द्रयत्न, धर्म, अधर्म, १. द्रव्याश्रय्यगुणवान् संयोगविभागेष्वकारणमनपेक्ष इति गुणलक्षणम् । -वैशे० सू० १।१।१६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001836
Book TitleAptamimansa Tattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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