________________
आवरण पृष्ठ १ के चित्र का परिचय
इस चित्र में अक आदमी रजकणों को पानी छांट कर धोखे (डंडे) से कूटता हुआ जमाता है, जब रजकण जम जाते हैं। तब वे उडते नहीं। इसी प्रकार आत्मा रूपी आदमी विशुद्धिरूपी पानी छाँट कर धोके से दर्शन मोहनीय व चारित्र मोहनीय कर्म रूपी रजकणों को जमाता है। तब वे कर्म उदय आदि के लिये अयोग्य बन जाते हैं। उसे कर्मों की उपशमना कहते है। मोहनीय कर्म की सर्वोपशमना होती है। शेष कर्मों की देशोपशमना होती है।
ucalion International
For Private POS
ON
wwwjainelibrary.org