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________________ प्रकाशकीय आणविक युग Atomio age का आधुनिक मानव सुपर-सोनिक प्लेन ( oper sonic plane) की तीव्र गति सुख के पीछे दोड लगा रहा है मगर वह सुखी नहीं बन रहा है। उन्टा वह ज्यादा से ज्यादा दुखी, दोन अशान्त अतृप्त बन रहा है । इसका एक महत्वपूर्ण कारण है कि जिसके लिए वह उडान भर रहा है, जिसके पीछे खून पसीना एक कर रहा है । वह बाह्य पदार्थों (external object) में नहीं वह उसी के पास है, उसी की आत्मा में रहा है । हुआ हैं परन्तु फिलहाल कर्मों से आवृत है । पाप कर्मों का आवरण ज्यों ज्यों हटता जाएगा त्यों-त्यों वह ज्यादा से ज्यादा सहज स्वभाविक आध्यत्मिक सुख प्रकट करता जाएगा। क्रमशःएक दिन ऐमा आयेगा कि समस्त कर्मों का विनशा हो जायेगा आत्म के ऊपर से को का पूरा आवरण हट जायेगा आत्मा सहज स्वभाविक शाश्वत सुख (enternal hapiness) का भोक्ता बन जायेगा । एसी विश्व मंगल की परम शुभकामना को लेकर जिनशासन शृंगार कर्मसाहित्यनिष्णात सिद्धांतमहोदधि श्रीमद् प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा की असीम कृपा दृष्टि से हमारी संस्था भारतीय-प्राच्यतत्व-प्रकाशन समिति, पिंडवाडा ने जैन शासन को प्राचीन अर्वाचीन सुविशालकर्मसाहित्य की भेंट की हैं। प्रस्तुत उपशमनाकरण ग्रन्थ जिसकी प्रकाशन की बात चल रही थी उसका छपाई कार्य Printing work) हमारी ज्ञानोदय प्रिन्टिग प्रेस, में चालू हो गया था। उपशमनाकरण का टीका रचयिता शामन प्रभावक युवकजागृति प्रेरक पुज्यपादाचार्य देव श्रीपद् विजय गुणरत्नसूरीश्वरजी महाराजा संवत २०४४ में पाली चातुमसि में विराजमान थे। पूज्यश्री ने ग्रन्थ की आर्थिक व्यवस्था हेतु श्री पूरण जैन संघ के अग्रणीयों को पत्र द्वारा प्रेरणा की और श्री पुरण जैन संघ ने ज्ञानद्रव्य को विशाल धनराशि भारतीय प्राच्यतत्व प्रकाशन समिति को अर्पण करने का निर्णय कीया । साथ साथ श्री पोरवाल जैन संघ शिवगंज ने भी ज्ञान द्रव्य की विशाल शनराशि अर्पण करने का निर्णय कीया । श्री पूरण जैन संघ एवं श्री पोरवाल जैन संघ शिवगंज का उदाहरण को देखकर श्रुतभक्ति के अनेक प्राचीन उदाहरण हमारी दृष्टि के समक्ष दोहराने लगते है। - महामंत्री पेथडशाह जिन्होने ३६००० सुवर्ण-मुद्रा अर्पितकर श्रीमद् भगवतिसूत्र श्रवण का अपूर्व श्रेयः उपार्जित कीया । एक दिन का उपाश्रय मे झाडू लगाने वाला लल्लिग श्रावक ने उपाश्रय को रत्न जडित किया जिससे रात्रि में भी निर्दोष प्रकाश की प्राप्ति के बल पर कलिकालसर्वज्ञ, याकिनिमहत्तरासुनुपूज्यपाद हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराजा १४४४ ग्रन्थ सर्जन का विराट कार्य करने में सक्षम बने। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001832
Book TitleKarmaprakrutigatmaupashamanakaranam
Original Sutra AuthorShivsharmsuri
AuthorGunratnasuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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