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________________ निशीथ : एक अध्ययन व्यवहार भाष्य के उपसंहार को देखने पर अत्यन्त स्पष्ट हो जाता है। प्रतएव वृहद्कल्प और व्यवहार भाष्य के कर्ता रूप से संघदास क्षमा श्रमण का स्पष्ट नाम-निर्देश क्षेम कीर्ति ने हमारे समक्ष उपस्थित किया है, यह मानना चाहिए। अब प्रश्न यह है कि क्या निशीथ भाष्य के कर्ता भी वे ही हैं, जो बृहत्कल्प और व्यवहार भाष्य के कर्ता हैं ? मुनिराज श्री पुण्यविजयजीने तो यही संभावना की है कि उक्त तीनों भाष्य के कर्ता एक ही होने चाहिए। पूर्वसूचित तुलना को देखते हुए, हमारे मतसे भी इन तीनों के कर्ता एक ही हैं, ऐसा कहना अनुचित नहीं है। अर्थात् यह माना जा सकता है कि कल्प, व्यवहार और निशीथ-इन तीनों के भाष्यकार एक ही हैं। अब मुनिराज श्री पुण्यविजयजी ने संघदास और सिद्धसेनकी एकता या उन दोनों के सम्बन्ध की जो संभावना की है, उस पर भी विचार किया जाता है। जिस गाथा का उद्धरण देकर संभावना की गई है, वहां 'सिद्धसेन' शब्द मात्र श्लेषसे ही नाम की सूचना दे सकता है। क्योंकि सिद्ध सेन शब्द वस्तुतः वहां सम्प्रति राजा के विशेषण रूप से आया है. नाम रूप से नहीं। बृहत्कल्प में उक्त गाथा प्रथम उद्देशक के अंत में (३२८६) आई है, अतएव श्लेष की संभावना के लिए अवसर हो सकता है। किन्तु निशीथ में यह गाथा किसी उद्देश के अन्त में नहीं, किन्तु १६ वें उद्देशक के २६ वें सूत्र की व्याख्या को अंतिम भाष्य गाथा के रूप में (५७५८) है। अतएव वहां श्लेषकी संभावना कठिन ही है। अधिक संभव तो यही है कि प्राचार्य को अपने नाम का श्लेष करना इष्ट नहीं है, अन्यथा वे भाष्य के अंत में भी इसी प्रकार का कोई श्लेष अवश्य करते। हां, तो उक्त गाथा में प्राचार्य ने अपने नामकी कोई सूचना नहीं दी है, ऐसा माना जा सकता है। फिर भी यह तो विचारणीय है ही कि सिद्धसेन क्षमाश्रमण का निशीथ भाष्य की रचना के साथ कोई संबंध है या नहीं ? मुनिराज श्री पुण्यविजयजीने सिद्धसेन क्षमाश्रमण के नामका अनेकवार उल्लेख होने की सूचना की है । उनकी प्रस्तुत सूचना को समक्ष रखकर मैंने निशीथ के उन स्थलों को देखा, जहाँ सिद्धसेन क्षमाश्रमण का नाम आता है, और मैं इस परिणाम पर पहँचा हैं कि बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथ भाष्य के कर्ता निशीथ चूर्णिकारके मतसे सिद्धसेन ही हो सकते हैं। क्षेम कीति-निर्दिष्ट संघदास का क्षेमकीर्ति के पूर्ववर्ती भाष्य या चूणि में कहीं भी उल्लेख नहीं है, किन्तु सिद्धसेन का उल्लेख तो चूर्णिकार ने बारबार किया है । यद्यपि मैं यह भी कह हो चुका है कि चूर्णिकार ने आदि या अंत में भाष्य कारके नाम का उल्लेख नहीं किया है तथापि चूमिण के मध्य में यत्र तत्र जो अनेक उल्लेख हैं, वे इस बात को सिद्ध कर रहे हैं कि चूर्णिकारने भाष्य कार के रूप से सिद्धसेन को ही माना है। अब हम उन उल्लेखों की जांच करेंगे और अपने मतकी पुष्टि किस प्रकार होती है, यह देखेंगे। (१) चूर्णिकारने निशीथ गा० २०५ को द्वार गाथा लिखा है । यह गाथा नियुक्तगाथा होनी चाहिए । उक्त गाथागत प्रथम द्वार के विषय में चूर्णि का उल्लेख है-'सागणिए त्ति दारं । अस्य सिखसेमाचार्यों व्याख्या करोति'-भाष्य गा० २०६ का उत्थान । गा० २०७ के १. वस्तुतः ये दोनों भाष्य एक ग्रन्थ ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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