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________________ निशीथ का प्राचारांग मे संयोजन और पृथककरण : प्रागम-संकलन काल में एक काल ऐसा रहा है, जब चार चूलिकाएँ तो प्राचारांग में जोड़ी जा चुकी थी, किन्तु निशीथ नहीं जोड़ा गया था। एक समय पाया कि जब निशीथ भी जोड़ा गया, और तभी वह बहु' से 'बहुतर' हो गया । और उसके २६ अध्ययन हुए। नंदी सूत्र और पक्खियसुत्त- दोनों में प्रागमों की जो सूची दी गई है, उसे देखने पर स्पष्ट हो जाता है कि उस काल तक प्रागमों के वर्गीकरण में छेद-जैसा कोई वर्ग नहीं था। नंदी और पक्षियसुत्त में अंग बाह्य ग्रन्थों की गणना के समय, कालिक श्रुत में', निशीथ को स्थान मिला है । इससे स्पष्ट है कि एक ओर नंदी के अनुसार ही आचारांग के २५ अध्ययन हैं, तथा दूसरी प्रोर नंदी में ही अंग बाह्य ग्रन्थों की सूची में निशीथ को स्थान प्राप्त है । अस्तु यही कहना पड़ता है कि उक्त नंदी सूची के निर्माण के समय निशीथ आचारांग से पृथक् था। किन्तु आचारांगनियुक्ति के अनुसार निशीथ प्राचारांग की ही पांचवीं चूला अर्थात् २६ वा अध्ययन है। इसका फलितार्थ यह होता है कि नन्दीगत प्रागम-सूची का निर्माण-काल और प्राचारांग-नियुक्ति की रचना का काल, इन दोनों के बीच में ही कहीं निशीथ आचारांग में जोड़ा गया है। और यदि नंदी को नियुक्ति के बाद की रचना माना जाए, तब तो यह कहना अधिक ठीक होगा कि इस बीच वह (निशीथ) 'पाचारांग' से पृथक् किया गया था। अब प्रश्न यह है कि निशीथ को आचारांग में ही क्यों जोड़ा गया ? पूर्वगत श्रुत के प्राचार नामक वस्तु के आधार पर निशीथ का निर्माण हुअा था और उसका वास्तविक एवं प्राचीन नाम आचार-प्रकल्प था। अतएव कल्पना होती है कि संभवतः विषय साम्य की दृष्टि से ही वह प्राचारांग में जोड़ा गया हो। और ऐसा करने का कारण यह प्रतीत होता है कि आचार-प्रकल्प में प्रायश्चित्त का विधान होने से यह आवश्यक था कि वह प्रामाणिकता की दृष्टि से स्वयं तीर्थकर के उपदेश से कम न हो ! अंग ग्रन्थों का प्रणयन तीर्थकर के उपदेश के आधार पर गणधर करते हैं, ऐसी मान्यता होने से अंगों का ही लोकोत्तर आगमरूप प्रामाण्य सर्वाधिक है । अस्तु प्रामाण्य की प्रस्तुत उत्तम कोटि के लिए ही प्राचार प्रकल्प-निशीथ को प्राचारांग का एक अंश या चूला माना गया, हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। प्रथम की चार चूला तो आचारांग के आधार पर ही बनी थीं । अतएव उनका समावेश तो आचारांग की चूला-रूप में सहज था ही। किन्तु पांचवीं चूलानिशीथ का आधार प्राचारांग न होने पर भी उसे प्राचारांग में ही संमिलित करने में इस लिये आपत्ति नहीं हो सकती थी कि समग्र अंग ग्रन्थों के मूलाधार पूर्वग्रन्थ माने जाते थे। प्रस्तुत वूला का निर्माण पूर्वगद प्राचार वस्तु नागक प्रकरण से हुआ था। और विषय भी प्रचारांग से संबद्ध था। निशीथ का एक नाम 'आचार"" भी है। वह भी इसी अोर संकेत करता है। १. हि० के० पृ. २४-२५ २. नियुक्तियां जिस रूप में माज उपलब्ध है; वह उनका अंतिम रूप है। किन्तु उनका निर्माण ___ तो जब से व्याख्यान शुरू हुमा तभी से होने लग गया था। ३. प्राचा० नि० गा० २०८-२६० ४. प्र.चा० नि० गा० २६१ Y. fato mo? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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