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________________ २३ मभाप्यनूणिके निगीथसूत्रे पीठिकायां विषय गायाङ्क पृष्टाइ विषय गाथाङ्ग पृष्ठा ४- अमूदृष्टि-वार ... २६ १७ चारित्र सम्बन्धी अनिचारों का अमूद्दष्टि का स्वरूप प्रायश्चित्त ५ - उपवृहण-द्वार (४) तपाचार ४१-४२ २३-२४ नपस्वी, सेवाभावी. विनया तपाचार का स्वरूप और स्वाध्यायों की प्रशंसा तथा तत्सम्बन्धी अतिचारों का करना, नथा उनके प्रति श्रद्धा प्रायश्चित्त पैदा करना (५) वीर्याचार ४३.४८ २४-२७ वीर्याचार का स्वरूप ६ - स्थिरीकरण द्वार वीर्याचार सम्बन्धी अतिचारों माधना से विचिलित होने वाले का प्रायश्चित्त तपस्वी आदि को स्थिर करना ४४. २५ ज्ञानाचार प्रादि ५ प्राचारों में ७-वात्सल्य-द्वार वीर्याचार की प्रधानता ४५-४६ . २५-२६ ग्लान नपस्वी बाल वृद्ध आदि वीर्याचार के ५ भेद के प्रति वात्सल्य भाव रखना । प्रकारान्तर मे वीर्याचार के वात्सल्य भाव न रखने पर ५ भेद प्रायश्चित्त ४८ २६-२७ २ अग्र द्वार ४६-५८ २७-३० ८-प्रभावना-द्वार अग्र के दश भेद द्रव्य अग्र के ७ प्रभावना का स्वरूप । और भाव-अग्र के ३ भेद ४६ अमूढ दृटि पर सुलमा का १ द्रव्याग्र का सोदाहर ग स्वरूप ५० उदाहरण २ अवगाहनाय का ,, ,, ५१-५२ तपस्वी प्रादि के प्रति श्रद्धा पैदा ३ आदेशाग्र का करने पर राजा थेगिक का ४ कालाग्र का " उदाहरण ५ क्रमाग का ., " स्थिरीकरण पर आपाढाचार्य का उदाहरण ६ गणनाग्र का वात्सल्य भाव पर वज्रस्वामी ७ मंचयान का , ८ प्रधान भावान का,, ,, का उदाहरण अथवा नन्दीषण का उदाहरण ६ बहुत , , . आठ प्रभावक १० उपचार ., , " अमूढ दृष्टि आदि की आराधना ३ प्रकल्प-द्वार . ५६-६२३०-३२ न करने पर प्रायश्चित प्रकल्प के निक्षेप (३) चरित्राचार ३५-४० २२.२३ द्रव्य प्रकल्प का स्वरूप चरित्रार का स्वरूप चरित्राचार के आठ भेद ३५ २२ . काल ,, , ६२ ३१-३२ समिति-गुप्ति का स्वरूप भाव २ ३.6 ५६ گیا ० ں ० क्षेत्र ,, , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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