SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४ ) 'छेदसूत्रज्ञ प्राचार्य आज के विद्वानों की जानकारी में नहीं है । श्राचार्य संघदास जिस विषय को भी उठाते हैं, उसे इतनी गहराई में ले जाते है कि साधारण विद्वानों की कल्पना वहाँ तक पहुँच ही नहीं सकती । और श्रावार्य जिनदास, वह तो चूण - साहित्य के एक प्रतिष्ठापक प्राचार्य माने जाते हैं । उन आगमों पर लिखा हुआ चूरिण साहित्य, जैन साहित्य में ही नहीं, श्रपितु भारतीय साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है । आगे लिखी जाने वाली संस्कृत टीकाएँ अधिकतर चूणियों की ही ऋणी हैं। निशीथसूत्र और भाष्य पर आचार्य जिनदास की चूर्णि, एक विशेष चूर्णि है । विद्वत्संसार में इसको सर्वोपरि प्रतिष्ठा है । विवादास्पद प्रसंगों पर चूर्ण का निर्णय खासतौर पर निर्णायक भूमिका के रूप में स्वीकार किया जाता है । आज से नहीं, बहुत वर्षो से जैन भजैन सभी शोधक विद्वान् निशीथभाष्य और ऋणि के प्रकाशन प्रतीक्षा में थे। बहुत से विवादस्पद विषयों का अन्तिम निर्णय इनके प्रकाशन के प्रभाव में रुका हुआ भी था । हमने अल्प एवं सीमित साधनों के आधार पर इस दिशा में उपक्रम किया है, देखिए, भविष्य सफलता की दिशा में हमारा कितना साथ देता है । छेद- सूत्रों का प्रकाशन गोपनीय है, फिर भी: क्या, आजकल बहुत से मुनिराज तथा श्रावक छेद सूत्रों का प्रकाशन ठोक नहीं समझते। आजकल बहुत पहले से यह मान्यता रही है। स्वयं भाष्य और चूर्णि के निर्माता भी यही धाररणा रखते हैं । वे छेदसूत्रों को अत्यन्त गोप्य बताते हैं और किसी योग्य अधिकारी के लिए ही उन्हें प्ररूपित करने की बात कहते हैं । यह ठीक है कि छेदसूत्र गोप्य हैं। उनमें भिक्षुत्रों के निजी आचार तथा प्रायश्चित्त का वर्णन है । उनमें की कुछ बातें प्रतीव गंभीर एवं गुप्त रखने जैसी भी हैं । साधारण व्यक्ति उनका आशय ठीक-ठीक नहीं समझ पाता, फलतः वह भ्रान्त हो सकता है, और कदाचित् उसके अन्तर्मन में जिन शासन के प्रति अवज्ञा का भाव भी पैदा हो सकता है । यह सब कुछ होते हुए भी छेदसूत्रों का प्रकाशन हुआ है और अब हो रहा है । स्थानकवासी परम्परा में आगमोद्धारक पूज्य श्री अमोलक ऋषिजी महाराज के द्वारा संपादित हिन्दी अर्थ - सहित छेदसूत्र प्रकाशित हुए हैं । बहुत पहले श्वेताम्बर देहरावासी संप्रदाय के सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री माणेक मुनिजी ने व्यवहारसूत्र भाष्य और संस्कृत टीका सहित प्रकाशित किया था । वर्तमान में सुप्रसिद्ध आगमोद्धारक बहुश्रुत श्री पुण्य विजयजी महाराज की ओर से भी बृहत्कल्प सूत्र का सर्वथा प्रद्यतन पद्धति से संपादन तथा प्रकाशन हुआ है । अन्य स्थानों से भी गुजराती अनुवाद के साथ कितने ही छेदसूत्र प्रकाश में आए है । मैं समझता हूँ, इतने प्रकाशनों के बाद शुद्धजनत्व को कोई क्षति तो नहीं पहुँची है। अपितु समझदार जनता की जिज्ञासा को अधिकाधिक प्रेरणा ही मिली है । 1 अव रहा प्रश्न गोपनीयता का । इस सम्बन्ध में तो यह बात है कि प्रायः प्रत्येक शास्त्र हो गोपनीय है । अधिकारी का ध्यान सर्वत्र ही रखना चाहिए | क्या अन्य सूत्र अनधिकारी को प्ररूपित किए जा सकते हैं ? नहीं । प्राचीनकाल में जैसे लेखन था, वैसे ही आज के युग में मुद्ररण है । गुरु-मुख से चली आने वाली श्रुतपरम्परा जिस दिन कलम और दवात का सहारा लेकर पुस्तकारूढ़ हुई, उसी दिन उसकी गोप्यता का प्रश्न समाप्त हो गया । जब श्रुत पुस्तकारूढ़ है, तो वह कभी भी, कहीं भी, किसी भी व्यक्ति के हाथों में आ सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy