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________________ छठा परिच्छेद अपनी राज-कन्या के पाणि-ग्रहण का प्रस्ताव किया। श्रीपाल ने कहा:- “मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं ; किन्तु आज्ञातकुल व्यक्ति को अपना सम्बन्धी बनाने के पूर्व आपको अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिये।” राजा ने कहा :- “मैंने इसका विचार अच्छी तरह कर लिया है। हंस छिपा नहीं रह सकता। आपका शील-स्वभाव और आपके गुण ही आपके कुल का परिचय दे रहे हैं। बैडुर्य-रत्न की खान से ही हीरा उत्पन्न हो सकता है।" श्रीपाल ने राजा महाकाल का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। महाकाल ने तुरन्त अपनी मदनसेना नामक कन्या का श्रीपाल के साथ विवाह कर दिया। इस समय दहेज में राजा ने श्रीपाल को अनेकानेक वस्त्राभूषण, नव प्रकार के उत्तम नाटक और अनेक दास-दासियाँ अर्पण की। . अनन्तर श्रीपाल बहुत दिनों तक अपनी इस नयी ससुराल में मौज करते रहे। अन्त में उन्होंने एक दिन राजा से बिदा मांगी। यह सुनकर राजा को बहुत ही दुःख हुआ, किन्तु लाचार, अतिथियों से किसी का घर आबाद नहीं होता। फिर पुत्री तो पराया धन ठहरी। यह सोचकर उन्होंने श्रीपाल को बिदा करने की तैयारी की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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