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श्रीपाल चरित्र
शस्त्रास्त्र से सुसज्जित हो, शहर की ओर रवाना हुए। दैवयोग से राजा महाकाल और उसके सैन्य से रास्ते में ही भेंट हो गयी। श्रीपाल ने राजा के निकट पहुँच कर कहा :- "राजन् ! धवल सेठ की सम्पत्ति इतनी आसानी से हाथ नहीं की जा सकती। आइये, पहले मुझसे युद्ध कीजिये फिर देखिये कि कुछ मिलता है या उलटा देना पड़ता है।"
श्रीपाल की यह ललकार सुनते ही महाकाल खड़ा हो गया, किन्तु उसने जब देखा कि श्रीपाल अकेले ही है, तब वह कहने लगा: - " हे युवक ! तू अभी नवयुवक है। शरीर भी तेरा सुन्दर है । इस तरह प्राण देने को क्यों तैयार हो रहा है ? जा, अपने घर लौट जा ।”
श्रीपाल ने कहा :- मैं युद्ध करने आया हूँ युद्ध में बातों का व्यापार कैसा ? इस समय तो शस्त्र का ही व्यापार होना चाहिये ।
श्रीपाल की यह बात सुन महाकाल को क्रोध आ गया। उसने अपने सैन्य को श्रीपाल पर आक्रमण करने की आज्ञा दे दी। आज्ञा मिलते ही सैनिकों ने चारों ओर से कुमार पर शस्त्रास्त्र की वर्षा आरम्भ कर दी। इससे कुमार की तो कोई हानि न हुई, परन्तु कुमार के प्रत्येक बाण से दो चार सैनिक अवश्य घायल होते थे। कुछ समय तक योंही युद्ध चलता रहा। अन्त में श्रीपाल की मार से महाकाल की सेना के छक्के छूट गये । सैनिक जिधर ही रास्ता मिला, उधर ही भागने लगे। अवसर देख, श्रीपाल ने महाकाल को भी
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