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________________ ३८ चौथा परिच्छेद दिया। इनकी समस्त सुविधाओं पर ध्यान रखने लगा। अब अपनी माता और पत्नी समेत श्रीपाल कुमार के दिन यहाँ बड़े आनन्द से कटने लगे। एक दिन श्रीपाल और मैनासुन्दरी महल के झरोखे में बैठे हुए थे। चौक में नाना प्रकार के नाच-गान हो रहे थे। झरोखे से दोनों जन इसका आनन्द ले रहे थे। इसी समय बगीचे से लौटते हुए राजा प्रजापाल की सवारी वहीं पर आ निकली। नाच-गान होते देख, क्षण भर के लिये वह वहाँ ठहर गया। जब उसकी दृष्टि उस झरोखे पर पड़ी, तब उसे स्वाभाविक ही यह जानने की इच्छा हुई, कि यह दोनों कौन हैं? ध्यान-पूर्वक देखते ही वह मैनासुन्दरी को पहचान गया; किन्तु उसके पास देवकुमार जैसे पुरुष को बैठा हुआ देख, उसे बहुत ही दुःख हुआ। वह भी रूपसुन्दरी की भाँति भ्रम में पड़ गया। उसे इस बात के लिये परिताप होने लगा कि-मैं अविचार-पूर्वक क्या कर बैठा? क्यों मैंने क्रोध में आकर कोढ़ी के साथ इसका व्याह कर दिया? निःसन्देह यह मेरे ही दुष्कर्मों का परिणाम है। मेरे ही कारण मेरे कुल में यह कलंक लगा! __ इन विचारों के कारण राजा प्रजापाल का चेहरा फीका पड़ा गया। पुण्यपाल दूर से राजा की भाव भंगियों का निरीक्षण कर रहा था। इस अवसर को उपयुक्त समझकर वह राजा प्रजापाल के पास गया और कहने लगा : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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