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________________ श्रीपाल - चरित्र कारण हमें जैनधर्म की प्राप्ति हुई है और इसीने हमें समस्त दुःखों से मुक्त किया है ।" पुत्री की यह प्रशंसा सुन रूपसुन्दरी को बहुत आनन्द हुआ। उसने कहा :- "यह हमारे और मैनासुन्दरी के सुकृत्यों काही परिणाम है कि, जो बिगड़ा हुआ था, वह भी बन गया और दुःख सुख के रूप में परिणत हो गया। मुझे अब केवल एक ही बात जानने की अभिलाषा है। मैं आपके कुल और वंश से परिचित नहीं हूँ | यदि आप लोग मुझे अपने कुल और वंश का परिचय देंगे तो बड़ी कृपा होगी ।" रूपसुन्दरी की यह बात सुन, कमलप्रभा ने अपना समस्त पूर्व - वृत्तान्त विस्तार - पूर्वक कह सुनाया । रूपसुन्दरी को जब यह मालूम हुआ कि उसकी पुत्री का विवाह एक राज कुमार के ही साथ हुआ है, तब उसके आनन्द की सीमा न रही। उसने कहा :- “वास्तव में मेरी पुत्री परम सौभाग्यवती है । इसने दोनों कुल का मुख उज्ज्वल कर दिया है ।" । रूपसुन्दरी इन लोगों से बिदा हो, जब अपने निवासस्थान में पहुँची, तब उसने अपने भाई पुण्यपाल से यह सब बातें कह सुनायीं । सुनकर उसे बहुत ही आनन्द हुआ। वह अपनी चतुरंगिनी सेना लेकर बड़े आडम्बर से श्रीपाल के निवास स्थान में गया और आग्रह पूर्वक श्रीपाल, मैनासुन्दरी और कमलप्रभा को अपने महल में ले आया । वहाँ उसने इन लोगों के लिये एक बहुत बड़े निवास स्थान का प्रबन्ध कर Jain Education International ३७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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