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________________ तीसरा परिच्छेद सिद्धचक्र की प्राप्ति ___ बड़ी सज-धज के साथ प्रजापाल की सवारी बगीचे की ओर चली। कई सवार आगे और कई सवार पीछे चलते थे। साथ में ध्वजा पताका आदि राज-चिन्ह भी थे। राजा एक बहुमूल्य घोड़े पर सवार थे। जिस समय यह सवारी शहर के बाहर पहुंची, उस समय राजा ने देखा कि सामने बहुत सी धूल उड़ रही है। मन्त्री से इसका कारण पूछने पर उसने बतलाया कि-यह सात सौ कौढ़ियों का एक दल है और इस समय हमारे शहर की ओर आ रहा है। इन कोढ़ियों ने एक कोढ़ी को अपना राजा बनाया है और उसी के साथ चारों ओर भ्रमण किया करते हैं। जहाँ जाते हैं, वहीं के राजा और धनी-मानो व्यक्तियों से सहायता माँगते हैं। इस प्रकार इन्हें जो कुछ मिल जाता है, उसी से अपनी जीविका चलाते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से हम लोगों को इनसे दूर ही रहना वाञ्छनीय है। मन्त्री की यह बात सुन राजा ने वह रास्ता छोड़कर दूसरा रास्ता लिया। कोढ़ियों ने यह देखकर तुरन्त अपना दूत राजा के पास भेजा। उसने राजा को प्रणाम कर सविनय निवेदन किया-राजन् ! हम लोग बड़ी आशा के साथ आपके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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