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श्रीपाल - चरित्र
प्रजापाल बैठा-बैठा क्रोध से काँप रहा था । उसकी अवस्था बहुत ही विचित्र हो रही थी। मालूम होता था कि वह इस समय न जाने क्या कर डालेगा? उसके चतुर मन्त्री ने उसका ध्यान इस घटना की ओर से हटाकर उसे शान्त करने के विचार से कहा- महाराज ! बगीचे में जाने का समय हो गया है। आज्ञा हो तो सवारी की तैयारी की जाय ।
यह बात सुनते ही राजा को अपने कर्तव्य का स्मरण हुआ । मन्त्री को अनुमति सूचक उत्तर दे उसने उसी क्षण सभा विसर्जन कर दी।
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