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________________ श्रीपाल - चरित्र - शीतलेश्या का प्राप्त होना (२५) आहारक - शरीर के आहारक बना सकना (२६) वैक्रिय - शरीर को वैक्रिय कर सकना (२७) अक्षीण महानसी - रसोई के पात्र में अंगूठा रखने से हजारों मनुष्यों को भोजन कराने की शक्ति (२८) पुलाक चक्रवर्ती की सेना को भी पराजित करने की शक्ति । तप के प्रभाव से प्राप्त होनेवाली अष्टसिद्धियों के नाम ये हैं- (१) अणिमा- छोटे से छोटे छिद्र में प्रवेश करने योग्य शरीर बना सकना या कमल-नाल में प्रवृष्ट हो, चक्रवर्ती की सिद्धि को विस्तारित करने की शक्ति प्राप्त करना (२) महिमा - मेरु से भी बड़ा रूप धारण करने की शक्ति (३) लघिमा - वायु से भी हलकाशरीर बना सकना (४) गरिमा - शरीर को वज्र से भी भारी बना सकना ( ५ ) प्राप्ति - पृथ्वीपर रहनेपर भी मेरु के अग्रभाग किंवा सूर्य के किरणों को स्पर्श करना (६) प्राकाम्य - जमीन पर चलने की तरह पानीपर चलना और जमीन में पानी की भाँति गोते लगाना। (७) ईशत्व- तीर्थंकर, किंवा इन्द्र की तरह ऐश्वर्य भोग करना (८) वशीत्व - प्राणी मात्र को वशीभूत करने की शक्ति होना । - नव निधि के सम्बन्ध में इतना ही कहना पर्याप्त है कि इनकी प्राप्ति चक्रवर्तियों को हुआ करती है। जिन पाठकों ने भरत प्रभृति चक्रवर्तियों का चरित्र पढ़ा या सुनाहोगा, निधियों का स्वरूप आसानी से समझ सकेंगे । अब हम पुनः तप पद का वर्णन करते हैं। २०९ तप अपूर्व कल्पवृक्ष है । मोक्ष सुख की प्राप्ति इसका फल है । देवता, मनुष्य, इन्द्र किंवा चक्रवर्ती की ऋद्धियाँ Jain Education-International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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