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________________ १२ दूसरा परिच्छेद सुरसुन्दरी ने उत्तर दिया- पुण्य से धन, यौवन, सुन्दरता, चातुर्य और प्रियतम की प्राप्ति होती है । मैनासुन्दरी ने कहा- पुण्य से न्यायशील बुद्धि, निरोग-शरीर और सद्गुरु की प्राप्ति होती है। दोनों के उत्तर युक्ति-संगत और सत्य थे। राजा को यह उत्तर सुनकर बहुत ही प्रसन्नता प्राप्त हुई । उसने अभिमानपूर्वक कहा— पुत्रियों ! मैं तुमसे बहुत ही प्रसन्न हुआ हूँ। इस समय तुम्हें जो इच्छा हो, माँग सकती हो। यह बात शायद तुमसे छिपी न होगी कि मैं निर्धन को धनवान और रंक को राजा कर सकता हूँ। सब लोग मेरी ही कृपा से सुख भोग रहे हैं। मैं जिससे तुष्ट हो जाऊँ उसे इस संसार के समस्त पदार्थ मिल सकते हैं । और जिससे मैं रुष्ट हो जाऊँ उसे कहीं बैठने को भी ठिकाना नहीं मिल सकता । पिताकी यह बात सुनकर सुरसुन्दरी ने कहा - पिताजी ! आपने जो कहा वह बिल्कुल ठीक है। इस संसार में जीवनदाता दो ही हैं। एक तो मेघ और दूसरा राजा । यदि यह दोनों न हों, दुनिया देखते ही देखते उलट पुलट हो जाय ! सुरसुन्दरी की यह बातें सुन हाँ में हाँ मिलाने वाले सभाजनों ने भी उसकी बातों का समर्थन करते हुए कहा कि- सुरसुन्दरी की बातें बहुत ही ठीक हैं। ऐसी चतुर कन्या हमने आज तक और कहीं नहीं देखी ! पुत्री की यह प्रशंसा सुन राजा का हृदय आनन्द से फूल उठा। उसने कहा- सुरसुन्दरी ! तेरी ज्ञान-गरिमा देखकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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