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________________ श्रीपाल-चरित्र सिद्धान्तों का रहस्य जानने पर उसे स्याद्वाद् मार्ग पसन्द पड़ा। उसने सातों नय, नवतत्व, षद्रव्य और उनके गुण-पर्यायों का अभ्यास किया। कर्म-ग्रन्थ, संघयण, क्षेत्रसमासादि प्रकरण अर्थ सहित कंठाग्र किये और प्रवचनसारोद्धारादि ग्रन्थ पढ़कर जैन धर्मका यथेष्ट ज्ञान प्राप्त किया। जब दोनों कन्यायें पढ़-लिखकर प्रवीण हुईं, तब एक दिन राजा ने विचार किया कि इनकी परीक्षा लेनी चाहिये। निदान, उसने उन दोनों बालिकाओं को वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो सभा-भवन में उपस्थित होने की आज्ञा दी। आज्ञा मिलते ही दोनों राजकुमारियाँ अपने अपने अध्यापकों के साथ राज सभा में पहुंच गईं। राजा ने अपनी दोनों पुत्रियों से शास्त्र के अनेक गूढ़ प्रश्न पूछे। दोनों ने उन प्रश्नों के उत्तर बहुत ही शीघ्रता और सच्चाई के साथ दिये। राजा को इससे परम सन्तोष हुआ। अध्यापकों और सभाजनों को भी सन्तोष और आनन्द हुआ। कुमारियों की बुद्धिमत्ता और कला-कुशलता देखकर सबके हृदय आश्चर्य से पूरित हो गये। पुत्रियों की विनम्र भाषा और ज्ञान युक्त बातें राजा को अमृत से भी बढ़कर मधुर प्रतीत हुई। इसके बाद राजा ने दोनों कन्याओं से कई समस्यायें पूछीं। कन्याओं ने तत्काल उनके उत्तर दिये। इसके बाद उसने पूछा-बेटियो! भला यह तो बतलाओ कि पुण्य से किस वस्तु की प्राप्ति होती है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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